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भगवान बुद्ध की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9553
आईएसबीएन :9781613012871

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भगवान बुद्ध के वचन

¤ मेरा मत अग्नि के समान है, जो स्वर्ग और पृथ्वी तथा बडे और छोटे के बीच विद्यमान समस्त वस्तुओं को उदरस्थ कर लेती है।

¤ मेरा मत स्वर्ग के समान है क्योंकि उसमें स्थान है - वहाँ पुरुष और स्त्री, लड़का और लड़की, शक्तिवान् और निर्बल सभी के स्वागत के लिए पर्याप्त स्थान है।

¤ पर जब मैं बोलता हूँ, तो वे मुझे नहीं पहिचानते और कहते, ''यह कौन हो सकता है, जो इस प्रकार बोलता है? यह मनुष्य है या भगवान्?'' फिर धार्मिक प्रवचन के द्वारा उन्हें सीख दे, स्फूर्त कर और प्रहर्षित कर मैं अन्तर्हित हो जाता। पर मेरे अन्तर्हित होने पर भी वे मुझे पहिचान न पाते।

¤ निन्दा न करना, घात न करना, मूलभूत उपदेशों में वास करना, भोजन में मात्रा जानना, एकांतवास, चित्त को योग में लगाना - यह बुद्धों की सीख है।

¤ बुद्ध का शिष्य तृष्णाओं के नाश में आनन्दित होता है।

¤ उदात्त सहनशीलता और धैर्य तथागत का परिधान है। परोपकार तथा प्राणिमात्र के प्रति प्रेम तथागत का निवास है। सद्धर्म के सूक्ष्म अर्थों की धारणा के साथ ही उसके विशिष्ट अनुप्रयोग का ज्ञान तथागत का आसन है।

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