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भगवान बुद्ध की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9553
आईएसबीएन :9781613012871

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भगवान बुद्ध के वचन

मनन, ध्यान और ऋद्धि

¤ शिष्य ने कहा- हे प्रभू। मुझे मनन का उपदेश दीजिए, ताकि मैं स्वयं को उसमें लगा सकूं और मेरा मन पवित्र भूमि के स्वर्गलोक में प्रविष्ट हो सके।

¤ बुद्ध ने कहा - पाँच प्रकार के मनन होते हैं -

1. पहला मनन प्रेम का मनन है, जिसके अन्तर्गत तुम्हें अपने हृदय को इस प्रकार-समायोजित कर लेना चाहिए कि तुम समस्त प्राणियों की समृद्धि और कल्याण की कामना करो और जिसमें तुम्हारे शत्रुओं के लिए सुख की कामना भी समाहित हो।

2. दूसरा मनन करुणा का मनन है, जिसमें तुम समस्त उत्पादित प्राणियों की पीड़ाओं का विचार उनके दुःखों और चिन्ताओं की स्पष्ट कल्पना के साथ इस प्रकार करते रहो कि तुम्हारी आत्मा में उनके लिए गहन करुणा का संचार हो जाए।

3. तीसरा मनन आनन्द का मनन है, जिसमे तुम दूसरों की समृद्धि की आकांक्षा करते हो और उनको आनन्दित देखकर आनन्दित होते हो।

4. चौथा मनन अपवित्रता का मनन है, जिसमें तुम व्यभिचार के दुष्परिणामों पर तथा पाप और रोगों के प्रभावों पर विचार करते हो। प्राय: क्षण का सुख भी कितना क्षुद्र होता है तथा इसका परिणाम भी कैसा मर्मान्तक होता है।

5. पाँचवा मनन प्रशान्ति का मनन है, जिसमें तुम प्रेम और घृणा, आतंक और उत्पीड़न, धन और दरिद्रता से ऊपर उठ जाते हो और स्वयं अपने भाग्य पर तटस्थ प्रशान्ति और पूर्ण धैर्य से विचार करते हो।

प्रश्न :- किन ध्यानों की सहायता से मनुष्य अभिज्ञा (अलौकिक शक्तियों) तक पहुँचता है?

उत्तर :- चार प्रकार के ध्यान होते हैं-

1. प्रथम ध्यान एकान्त कहा जाता है, जिसमें तुम्हें अपने मन को इन्द्रियपरता से मुक्त कर लेना चाहिए।

2. द्वितीय ध्यान आनन्द और उल्लास से परिपूर्ण मन की स्थिरता है।

3. तृतीय ध्यान आध्यात्मिक विषयों से आनन्द की उपलब्धि करना है।

4. चौथा ध्यान पूर्ण पवित्रता और शान्ति की अवस्था है, जिसमें मन समस्त हर्ष और विषाद के परे उठ जाता है। विनम्र बनो और अनुचित व्यवहारों का परित्याग करो, जो तुम्हारे मन को जड बना देते हैं।

प्रश्न :- हे तथागत! मेरे प्रभु, मुझे ऋद्धिपाद (जड़ पर मन का अधिकार अर्जित करने की विधि) का उपदेश दीजिए।

उत्तर - तथागत ने कहा :- चार प्रकार के साधनों से ऋद्धि (जड़ पर आत्मा का अधिकार) प्राप्त की जा सकती हैं।

1. दुर्गुणों को पनपने मत दो।

2. जो दुर्गुण उत्पन्न हो गये हैं, उन्हें दूर करो।

3. उस अच्छाई को उत्पन्न करो, जो अब तक नहीं है।

4. निष्ठापूर्वक खोजो और दृढ़ता के साथ अपनी खोज में लगे रहो।

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