उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘मैं कर नहीं सकता।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि हमारे पीछे कोई गुप्तचर लगा है।’’
‘‘क्यों?’
‘‘एक अन्य स्त्री है जो यह समझती है कि मेरा आपसे घनिष्ट सम्बन्ध बन रहा है। इसे वह पसन्द नहीं करती। इस कारण उसने हमारे पीछे किसी को यह देखने के लिए लगा दिया है कि हम कहाँ जाते हैं और क्या करते हैं।’’
‘‘कौन है वह स्त्री?’’
‘‘उसका नाम मेनका है और वह सुरराज के भवन में रहती है। किसी कारणवश मैंने उसकी अवहेलना की है, इससे वह रुष्ट हो गई है।’’
‘‘मेनका? आप सत्य कहते हैं क्या?’’
‘‘हाँ, मुझसे चित्र खिंचवाने आई थी। उसने आग्रह किया है कि मैं उसका नग्न चित्र बनाऊँ। लगभग एक पहर तक वह अवस्त्र मेरे सम्मुख खड़ी रही और मैं चित्र बनाता रहा। उसके बाद मुझे कुछ बताना चाहती थी, मैंने कह दिया कि वह वस्त्र पहन ले और चली जाय। मुझे निश्चित समय पर आपसे मिलने आना था। इस पर उसके माथे पर त्योरी चढ़ गई।’’
‘‘वह मेनका नहीं हो सकती।’’ नीलिमा ने चिन्ता प्रकट करते हुए कहा।
‘‘मैं क्या जानूँ! उसने बताया था कि उसका यही नाम है और वह उस अप्सरा मेनका की पुत्री है जिसने महर्षि विश्वामित्र को भ्रष्ट किया था और शकुन्तला को जन्म दिया था।’’
‘‘परन्तु वह तो सुरराज की कन्या है।’’
‘‘मैं समझता हूँ कि राजभवन की किसी स्त्री ने मुझे ठगने के लिए अपना यह परिचय दिया है।’’
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