उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘मेरे प्रश्न पर नीलिमा की आँखों में एक विशेष प्रकार की चमक दृष्टिगोचर हुई। उसके गालों पर भी कुछ लाली और कुछ चमक बढ़ गई थी। उसने लज्जा से आँखें झुकाकर एक क्लारी में से मधुमालती का फूल उखाड़कर सूँघ लिया। फूल सूघँकर उसने पूछा, ‘तो आप मेरा निमन्त्रण स्वीकार करेंगे?’’
‘‘कदाचित् आज यह सौभाग्य नहीं प्राप्त कर सकता। मुझे सुरराज में भेंट करनी है। उन्होंने सूर्यास्त से एक घड़ी पश्चात् का समय भेंट के लिए निश्चित किया है।’’
‘‘मेरी इस आपत्ति को सुन वह कुछ उदास-सी दिखाई देने लगी। उसका पति उग्रश्रवा मेरी आपत्ति सुन हँस पड़ा। हँसकर उसने कहा, ‘देखियेजी! आपका प्रश्न है कि क्या यहाँ नीलिमा से अधिक सुन्दर स्त्रियाँ है, रात को सुरराज की भेंट पर इसका उत्तर मिल जायेगा।’’
‘‘अभी तो मुझे आपकी पत्नी बहुत ही भली प्रतीत हो रही है। इस पर भी मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इनको अपनी बड़ी बहिन के समान ही समझता हूँ।’’
‘‘वह क्या होती है?’’
‘‘जब एक ही माँ के पेट से दो बालक उत्पन्न हों, एक लड़का और एक लड़की तो लड़की लड़के की बहिन कहाती है। चाहे वे एक समय में उत्पन्न हों चाहे कालान्तर में। इस पर दोनों में यौन-सम्बन्ध नहीं बन सकता।’’
‘‘कौन मना करता है?’
‘‘समाज के नियम। हमारे रीति-रिवाज और राज्य भी।’’
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