उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
|
137 पाठक हैं |
हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘इसका पूर्ण रहस्य तो हम जानते नहीं, इतना ही बता सकते हैं कि जब हममें से कोई अधर्म की बात करता है तो राज्य उसको पकड़ कर काम पर लगा देता है। ये बन्दीगण ही अन्न तथा वस्त्र उत्पादन का कार्य करते हैं। परन्तु कहाँ और किस प्रकार उत्पादन होता है, इस विषय में हम नहीं जानते।’’
‘‘मैंने उनसे अधिक परिचय प्राप्त करने के लिये पूछा लिया’’
‘‘आपका नाम क्या है?’’
‘‘मुझे उग्रश्रवा कहते हैं।’’
‘और इन देवीजी को?’
‘‘ये मेरी पत्नी हैं नीलिमा।’’
‘‘आप कहाँ रहते हैं?’’
‘‘मार्ग संख्या दस, मकान एक सहस्त्र बीस और आगार संख्या पचास?’’
‘‘कितने आगार हैं आपके गृह में?’’
‘‘पैंसठ और उनमें पैंसठ परिवार रहते हैं।’’
‘‘आपकी कोई सन्तान है?’’
‘‘दो कन्याएँ थीं, उनमें से एक का विवाह हो गया है। एक सुरराज के प्रासाद में नृत्य-संगीत करती है।’’
|