उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘यहाँ किस-किसका चित्र बनाया है आपने?’’
‘‘अभी आज ही तो मैं आया हूँ।’’
‘‘कहाँ से आये हैं?’’
‘‘गन्धमादन पर्वत पर ऋषि गवल्गण के आश्रम से।’’
‘‘उस आश्रम में क्या होता है?’’
‘‘उसमें कला, ज्ञान, विज्ञान की शिक्षा दी जाती है।’’
‘‘शिक्षा से क्या होता है?’’
‘‘शिक्षित व्यक्ति बुद्धिमान और चरित्रवान् हो जाता है।’’
‘‘तो वहाँ महर्षिजी के आश्रम में बुद्धि बना-बनाकर बाँटी जाती है?’’
‘‘नहीं यह बात है। वहाँ पर विधाएँ पढ़ाई जाती हैं। लोग विद्या पढ़कर अनेकानेक प्रकार के कार्य करते है, जिससे उनको धन मिलता है और धन से वे अपनी आवश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं।’’
‘‘क्या वस्तुएँ खरीदते हैं आप?’’
‘‘भोजन, सामग्री. वस्त्र तथा प्रसाद आदि।’’
‘‘तो क्या ये वस्तुएँ आपको बिना मूल्य नहीं मिलतीं?’’
‘‘बिना मूल्य का क्या अभिप्राय है आपका?’’
‘‘जैसे यहाँ मिलती है?’’
‘‘यहाँ कैसे मिलती हैं?’’
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