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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘पिताजी और पाराशरजी के उक्त वार्त्तालाप का विवरण सुन सुरराज गम्भीर हो गए और कहने लगे, ‘संजयजी! आपके ज्ञान की परीक्षा तो हो गई, परन्तु आपकी व्यावहारिकता की परीक्षा करनी अभी शेष है। उसके पश्चात् ही आपको किसी कार्य पर नियुक्त किया जा सकता है। अभी आप यहाँ रहिए। हम विचारकर आपको किसी कार्य पर नियुक्त कर देंगे।’’

‘‘अब आप जा सकते हैं। आपके निवास का प्रबन्ध हो गया है। आप यहाँ रहते हुए किस प्रकार अपना समय व्यतीत करेंगे?’’

‘‘कुछ पुस्तकें पढ़ने के लिए मिल जायें तो समय बीत जायेगा।’

‘‘यहाँ पुस्तकें नहीं पढ़ी जातीं। तुमने देखा नहीं कि यहाँ बालक बहुत कम है। पुस्तकें तो बालकों के लिए ही होती हैं।’’

‘‘जो कार्य यहाँ के लोग करते हैं, वही करने के लिए मिल जाए।’’

‘‘यहाँ के लोग कोई ऐसा काम नहीं करते जैसे कि आपके देश में किये जाते हैं।’’

‘‘तो श्रीमान्! मुझे रंग, तूलिकाएँ और पत्रक मिल जायें। मैं यहाँ के अलौकिक दृश्यों के चित्र बनाऊँगा।’’

‘‘ओह! तो तुम चित्रकला भी जानते हो? ऐसा ही करो। किन्तु इन पहाड़, नदी-नालों के चित्र खींचकर क्या करोंगे? हमारी कुछ प्रिय तथा सुन्दर अप्सराओं के चित्र बनाओ और फिर हमें दिखाना। कदाचित् हमें पसन्द आ जायें।’’

‘‘ठीक है महाराज! मेरा समय इस प्रकार कट जायेगा।’’

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