उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘मुझको भय है, पिताजी ने कहा, ‘संजय कुछ पढ़ेगा नहीं और आपके पास जाकर किसी निषाद-कन्या पर अपना पौरुष प्रकट करने लगेगा।’’
‘‘पाराशरजी कहने लगे, ‘तो क्या आप मेरे इस समागम को बुरा कार्य समझते हैं?’’
‘‘ऋषिवर! केवल समागम को ही नहीं प्रत्युत अविवाहित और बलात् किये गए समागम को मैं बुरा समझता हूँ।’’
‘‘देखो भाई! जब काम का वेग होता है तो देवता भी इसे सहन नहीं कर सकते।’’
‘‘हाँ, प्यास लगे तो मनुष्य गन्दी नाली में भी पानी पीने को तैयार हो जाता है।’’
‘‘तो तुम उस निषाद-कन्या को गन्दी नाली की उपमा देते हो? वह तो एक क्षत्रिय-कन्या थी।’’
‘‘क्षत्रिय के वीर्य से एक माहीगीरों की वेश्या के पेट से, बिना विवाह किये, सत्यवती उत्पन्न हुई। सत्यवती के पेट से और आपके वीर्य से बिना विवाह किये, कृष्ण द्वैपायन हुए। आगे भगवान् जाने किसके पेट और जिसके वीर्य से क्या उत्पन्न होगा! यह संजय आपके आश्रम में नहीं जायेगा। आपका आश्रम यमुना किनारे है और वहाँ पर निषादों की एक बहुत बड़ी बस्ती है।’’
‘‘इस पर पाराशरजी ने पूछ लिया, ‘तो आप गान्धर्व-विवाह को विवाह नहीं मानते?’’
‘‘गान्धर्व विवाह गान्धारों में, जो श्रुति और ब्राह्मण-ग्रन्थों के मार्ग नहीं जानते, प्रचलित था। उन्होंने आर्यों के सम्पर्क में आने से उनकी बहुत-सी बातें सीख ली हैं। इस पर भी उनके विवाह-सम्बन्धी विचार नहीं बदले। वे अभी भी अपनी वासना-तृप्ति को धर्म का आवरण देने के लिए गान्धर्व-विवाह और नियोग की बात किया करते हैं आपने भी इसको अपनी त्रुटिया को ढाँपने के स्वीकार कर लिया है।’’
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