उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘इसके साथ ही शान्तनु ने बुढ़ापे में एक निषाद युवती से विवाह कर अपनी प्रजा के सामने वह उदाहरण उपस्थित किया है कि छोटी जाति की कन्याएँ क्षत्रियों, वैश्यों और ब्राह्मणों के घर जाकर उनसे विवाह की इच्छा करने लगी हैं। क्षत्रिय कुमार भी बिना विवाह के उन लड़कियों से अपनी वासना तृप्ति करते हैं। और फिर महर्षि पाराशर की भाँति उन लड़कियों के गर्भिणी हो जाने पर उन्हें छोड़ देते हैं। इस प्रकार राज्य में वर्णसंकरों की वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही भ्रूण हत्याएँ भी बढ़ रही है।’’
‘‘यदि इतना पाप बढ़ रहा है तो उसे रोकना चाहिए, संजयजी!’’
‘‘हाँ महाराज, चाहिए तो यही।’’
‘‘क्या उपाय बताते हैं आप उसका?’
‘‘पतन के भयंकर लक्षण तो दिखाई देने लगे हैं। पौरवों के राज्य में ब्राह्मण निश्शेष हो गये हैं। जो कुछ थोड़े-से बचे भी हैं, वे राजा का मुख देखते हैं। वही धर्म बन गया है जो राजा करे अथवा कहे। धर्म का आधार शास्त्र नहीं रहा।’’
‘‘मैं आपको पाराशरजी का अपने पिताजी से हुए वार्त्तालाप का एक अंश सुनाता हूँ। मैंने अर्थशास्त्र, अर्थात् राज-विद्या अपने पिताजी से पढ़ी है। एक बार महर्षि पाराशरजी पिताजी के आश्रम में आये तो मेरे विषय में पूछने लगे। पिताजी ने हँसी-हँसी में कह दिया, यह मेरा पुत्र संजय है। न तो अध्ययन में चित लगाता है और न ही किसी राज्य में जाकर जीविकापार्जन करता है।’’
‘‘इस पर पाराशरजी ने कह दिया, ‘इसे मेरे पास भेज दो। वहाँ मेरा निषाद-कन्या से एक पुत्र कृष्ण है। वह वेद-वेदांग पढ़कर अति योग्य हो गया है।’’
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