लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


जब तक बैरा अगला भोज्य पदार्थ लाता, मैंने अपने संशय का निवारण करने के लिए उससे पूछ लिया, ‘‘क्षमा करें, आपकी आयु इस समय कितनी होगी?’’

उसने कहा, ‘‘साठ वर्ष के लगभग।’’
‘‘साठ!’’ मैं आश्चर्य-चकित हो उसके मुख की ओर देखने लगा।

‘‘जी हाँ! आपका आश्चर्यान्वित होना भी स्वाभाविक ही है। मुझे बम्बई में प्रैक्टिस करते हुए पाँच वर्ष हो गये हैं। तीस वर्ष तक मैं तिब्बत के पुंगी नामक ग्राम में एक बौद्ध-विहार में साधना करता रहा हूँ और कानून की पढ़ाई समाप्त करने के पश्चात कलकत्ता के एक वकील श्री एस॰ सी॰ सेन से मैंने काम सीखा है।’’

‘‘परन्तु देखने से तो आप पच्चास वर्ष के प्रतीत होते हैं।’’

‘‘हाँ, ऐसा होना ही चाहिए। वास्तव में मुझको मेरे गुरुजी ने सिखा दिया है कि कैसे मैं काल से तटस्थ होकर उसके क्षयकारक प्रभाव से बच सकता हूँ।’’

बैरा चावल और ‘चिकन करी’ ले आया। हम दोनों ने खाना आरम्भ कर दिया। मैंने पुनः अनुभव किया कि वह मुझसे दुगुनी गति से खाता है। मैं धीरे-धीरे चबा-चबाकर कर खा रहा था। चबाता तो वो भी प्रतीत होता था, परन्तु जो कार्य मैं दस बार मुख चलाने से कर सकता था, वही कार्य, वह दो तीन बार मुख चलाने से ही कर लेता था।

परिणाम यह हुआ कि मैंने अभी आधी प्लेट ही खाली की थी, जबकि वह पूर्ण प्लेट चट गया। तत्पश्चात् वह पुनः मुझसे बाते करने लगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book