उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
|
4 पाठकों को प्रिय 137 पाठक हैं |
हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
मैं इसका अर्थ नहीं समझा। जो मैं समझ सका। वह यह था कि ये महाशय मुझको पण्डित महीपति से अधिक-भोला-भाला अथवा मूर्ख मानते हैं। इस समय बैरा खाने की अन्य वस्तुएँ रख गया। मैंने नमक, काली मिर्च डालकर खाना, आरम्भ किया। उसने भी वही किया। कुछ देर तक हम दोनों चुपचाप खाने में लगे रहे। वह आदमी बहुत जल्दी-जल्दी खाता था। मैं अभी एक स्लाईस ही खा पाया था कि उसने तब तक मछली के तीन टुकड़े और दो स्लाईस समाप्त कर दिये थे। मक्खन तो कभी का समाप्त कर चुका था।
मैं अभी खा ही रहा था कि उसने अपना परिचय देना आरम्भ कर दिया। उसने कहा, ‘‘मैं आजकल बम्बई में वकालत करता हूँ। वैसे, मैंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की है।’’
‘‘बम्बई से पूर्व कहाँ प्रैक्टिस करते थे?’’ मैंने पूछा। यह प्रश्न तो खाते-खाते कुछ बात करने की दृष्टि से ही मैंने पूछा था। वैसे मैं अपने मन में यह निश्चय कर चुका था कि इस व्यक्ति से सतर्क रहना ही ठीक होगा।
उसने कुहनियों को मेज पर रख और दोनों हाथों के पंजे बाँध कर अपनी ठुड्डी के नीचे रख मेरी ओर ध्यानपूर्वक देखते हुए कहा, ‘‘मैं प्रैक्टिस आरम्भ करने से पूर्व दो काम करना चाहता था। एक तो प्राचीन इतिहास और धर्मशास्त्र का अध्ययन करने और दूसरे अपने बाल्यकाल के स्वप्नों का अर्थ समझने के लिए योग-साधना। इस कार्य में तीस वर्ष लग गये। तत्पश्चात् जीवन में स्थिर होने के लिए बम्बई में प्रैक्टिस आरम्भ कर दी।’’
अब मेरे विस्मय का ठिकाना नहीं रहा। मैं अपने सम्मुख बैठे व्यक्ति की आयु का अनुमान लगाने लगा था। मुझको तो वह पच्चीस-तीस वर्ष की आयु का युवक प्रतीत होता था। मैं उसके मुख की ओर देख विचार कर रहा था कि क्या यह सत्य ही पागल है अथवा उसकी आयु के विषय में मेरा अनुमान गलत है? जब मैं उसके मुख पर देख रहा था, उस समय वह मुझे देखकर मुस्करा रहा था। उसकी मुस्कराहट से तो वह पागल प्रतीत नहीं होता था। इस समय बैरा प्लेटें उठाने आया। मैंने खाना छोड़ा तो वह प्लेटें उठाकर ले गया।
|