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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘चन्द्रवंशी आचार-विचार देवताओं के आचार-विचार से और आर्यों के आचार-विचार से सर्वथा भिन्न प्रकार का था। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रवंशी सभ्यता मैटिरियलिस्टिक भौतिकवादी) थी।’’

‘‘चन्द्रवंशी दानव तथा असुर जातियाँ मध्य एशिया, फिलिस्तीन, सीरिया इत्यादि देशों की रहने वाली थीं और देवता तथा आर्य हिमाचल, पांचाल, आर्यावर्त अर्थात् हिमालय और विन्ध्य के मध्यवर्ती देश के रहने वाले थे। कश्मीर में आरम्भ से नाग जाति के लोग बसते थे। तत्पश्चात् आर्य लोगों ने उसे बिजय कर लिया और तदनन्तर यह देवलोक का एक भाग बन गया।’’

‘‘विन्ध्याचल से दक्षिण की ओर राक्षस जाति का राज्य था। ये लोग हिन्द सागर के द्वीपों से भारत आये थे। नहुष ने देवलोक पर आक्रमण कर उसको अपने अधीन कर लिया था, परन्तु नहुष के सजातियों तथा नहुष ने स्वयं के अपने आचरण से देवलोक के रहने वालों को इतना रुष्ट किया कि उन्होंने उसे ही मार डाला।’’

‘‘आर्यों के आचार-व्यवहार का ठीक-ठीक परिचय तो वाल्मीकि रामायण पढ़ने से मिलता है। उस आचार-व्यवहार की तुलना चन्द्रवंशी आचार-व्यवहार से की जाय तो आकाश-पाताल का अन्तर दिखाई देने लगता है।’’

‘‘यों तो किसी भी देश अथवा वंश में सब-के-सब लोग न तो दुष्ट होते हैं और न धर्मात्मा ही। अतः किसी देश के रहने वाले अथवा किसी वंश में उत्पन्न होने वालों की संस्कृति का अनुमान उसमें बहुसंख्यों के अचार-विचार से लगाया जाता है।’’

‘‘इसी विचार से चन्द्रवंशी, दानव तथा असुरों के वंश की संस्कृति जैसे उनके बहुसंख्यक लोगों में पाई जाती है, वह रामायण में वर्णित संस्कृति से भिन्न है। चन्द्रवंशी व्यक्तियों के चरित्र पर दुष्यन्त के व्यवहार से और भी प्रकाश पड़ता है।’’

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