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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘यह बात इस प्रकार नहीं है। विज्ञान में पिछले लोगों ने बहुत उन्नति की प्रतीत होती है। यद्यपि वह उन्नति कई कारणों से स्थिर नहीं रह सकी है। आज भी विज्ञान में जो उन्नति हुई है, वह एकदम विनाश को प्राप्त हो सकती है। ऐसी सम्भावना तो आजकल के विद्वानों को भी अनुभव होने लगी है। यही कारण है कि विज्ञान के आधुनिक आविष्कारों को लिखकर, उसका माइक्रो फोटोग्राफ लेकर पाँच-पाँच सौ से एक-एक हजार फुट गहरे कुएँ खोद उनमें रखा जा रहा है। जिससे यदि हाइड्रोजन बम इत्यादि से सार्वभौमिक विनाश हो तो ज्ञान का यह भण्डार सुरक्षित रखा जा सके।’’

‘‘मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि वर्तमान उन्नतावस्था भी विनाश को प्राप्त हो सकती है और यदि प्राचीन काल की प्रतीत होने वाली चमत्कारी उन्नति भी सब लोप हो गई है तो यह विस्मय करने का विषय नहीं।’’

‘‘जब ययाति पुनः युवा हो गया तो देवयानी के साथ बहुत काल तक वह भोग-विलास में रत रहा। कई वर्षों के पश्चात् ययाति ने वह यौवन पुरु को वापस कर दिया और पुरु को अपना राज्य देकर वह तपस्या करने वन में चला गया।’’

‘‘पुरु की सन्तान पौरव कहलाई। पुरु की सन्तान ने अपना साम्राज्य भारतवर्ष के श्रीकण्ठ, पांचाल, गंगा-यमुना के मध्यवर्ती देश तक फैला दिया। उन पौरवों में ही कौरव और पाण्डव हुए और वे ही भारत-युद्ध के मुख्य पात्र बने।’’

‘‘अब आप देख सकते हैं कि इस कथा से इतना तो स्पष्ट ही है कि ययाति को अपने पुत्र का यौवन लेकर भोग-विलास करते लज्जा नहीं लगी। ययाति के पिता नहुष भी जब देवलोक के राजा हुए थे तो वे भी इतने विषय-रत थे कि इन्द्र की पत्नी शची का भोग करने के लोभ में राज्य गँवा बैठे थे और प्रजा ने उनको मार डाला था।’’

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