उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘वास्तव में यह प्रैक्टिस तो दुनिया को यह बताने के लिए है कि मैं एक आवारा व्यक्ति नहीं हूँ। यह मेरे जीविकोपार्जन का स्रोत है; अन्यथा मैं रुपये-पैसे की आवश्यकता नहीं रखता।’’
बैरा चाय दे गया और गाड़ी चल पड़ी। मैंने चाय पीते हुए पूछा,
‘‘आप नहीं पियेंगे क्या?’’
‘‘नहीं। मैं स्नानादि कर चुका हूँ। अगले स्टेशन पर ‘ब्रेकफास्ट के लिए डाइनिंग कार में चलेंगे।’’
मैंने चाय पी और शौचादि के लिए चला गया। अगले स्टेशन पर गाड़ी के पहुँचने तक मैं नित्यकर्म से निवृत्त हो, कपड़े पहनकर ब्रेकफास्ट के लिए तैयार हो गया। मैं इस अवधि में भी उसके कथन पर विचार करता रहा था। भविष्य के लिए जानने की मेरी उत्कण्ठा जाग उठी। किन्तु संदेह होता था कि वह वास्तव में उसी प्रकार घटित होगा, जिस प्रकार यह व्यक्ति बतायेगा? मैंने कई ज्योतिषी देखे थे, जिनकी शत-प्रतिशत बातें सत्य नहीं होती थीं, तो क्या यह उन ज्योतिषियों से अधिक प्रामाणिक सिद्ध होगा? मेरे मन में यह आया कि इस व्यक्ति के साथ दिन-भर रहना है। अतः इसकी बातों का आनन्द तो लिया ही जा सकता है।
ब्रेक-फास्ट लेते समय मैंने पूछ लिया, ‘‘आप अमृतसर किस कार्य से जा रहे हैं?’’
‘‘वहाँ मेरा विवाह होने वाला है। अहमदाबाद की औलम्पिक क्लाथ मिल्ज़ के सोल एजेण्ट श्री नटवरलाल की लड़की का मुझसे विवाह हो रहा है, इसलिए मैं वहाँ जा रहा हूँ।’’
‘‘अब इस आयु में आप विवाह करेंगे!’’
‘‘मैं तो अभी पच्चीस-तीस वर्ष का युवा ही प्रतीत होता हूँ। और वह लड़की इस समय तेईस वर्ष की है।’’
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