उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
सोमभद्रजी से कई बार कश्मीर की सुरक्षा के विषय में बातचीत होती रहती थी और उस बातचीत से उपलब्ध वृत्तान्त को मैंने वहीं नौका में बैठे हुए लिख दिया। मेरा उत्तर था, कश्मीर में सैनिकों की संख्या दस सहस्त्र है, परन्तु देवेन्द्र ने यहाँ ऐसे यन्त्र लगाये हुए हैं, जिनसे इस देश की वैसे ही रक्षा हो सकती है, जैसे देवलोक की। वह देवता, जो यहाँ लगे हुए सुरक्षा-सम्बन्धी यन्त्रों का संचालन करने वाला है, बहुत ही लुक-छिपकर रहता है। नहुष की देवलोक में विजय से शिक्षा ली गई है। सुरक्षा-यन्त्रों की रक्षा पर ऐसा व्यक्ति लगा हुआ है, जो किसी से भी मिलता नहीं है।
‘प्रकृति ने भी कश्मीर की रक्षा के लिए बहुत अच्छा प्रबन्ध कर रखा है। इसमें आने के केवल दो मार्ग है। एक तो महर्षि मार्तण्ड के आश्रम के पार्श्व से और दूसरा वितस्ता नदी के तट के साथ-साथ। पहला मार्ग देवलोक में से होकर आता है और दूसरा गान्धर्व देश में से होकर।’
‘अतः कश्मीर पर आक्रमण करने से पूर्व गन्धर्वों से बातचीत करनी होगी। कदाचित् वे मार्ग देने का मूल्य माँगेंगे।’
‘इस पर भी इन मार्गों पर सुरक्षा के लिए खड़े बीस-तीस सैनिक सहस्त्रों सैनिकों का सामना कर सकते हैं और उन्हें कश्मीर में घुसने से रोक सकते हैं।’
‘मेरा निवेदन है कि देवलोक से झगड़ा करने के स्थान पर उससे समझौता कर इस देश को अपने अधीन करना चाहिए।’
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