लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘तो आप ही मेरे मित्र बन जाइए।’’

वह वृद्ध हँस पड़ा। हँसकर उसने कहा, ‘‘मैं यहाँ के कारावास का अध्यक्ष हूँ। मेरी मित्रता तो वहाँ रहने वालों के लिए ही हो सकती है।’’

‘‘मैं तो वहाँ चलकर रहने के लिए भी तैयार हूँ। परन्तु मुझको यह देश घूमकर देखने की स्वीकृति मिलनी चाहिए।’’

‘‘वहाँ रहने वालों के लिए ऐसी स्वीकृति नहीं मिल सकती।’’

‘‘तो आप वहाँ नहीं रहते।’’

‘‘रहता होता तो बाहर कैसे आ सकता? वहाँ रहने के इच्छुक को कोई भारी अपराध करना चाहिए। वहाँ काम भी करना पड़ता है।’’

‘‘अपराध तो मैं करूँगा नहीं। मैं तो धार्मिक जीव हूँ। जहाँ आप रहते हैं, वहीं मुझको ठहरा सकते हैं।’’

‘‘नहीं, हस्तिनापुर से आये व्यक्ति को हम अपने घर में नहीं रख सकते। वे परिवार की लड़कियों को बिगाड़ देते हैं।’’

‘‘मैं वचन देता हूँ कि मैं ऐसा नहीं करूँगा।’’

‘‘हस्तिनापुर वालों के वचनों का विश्वास नहीं होता। आप अब जा सकते हैं। मुझको और भी कार्य है।’’

‘‘अच्छी बात है। मैं यत्न करता हूँ कि कोई मित्र मिल जाये।’’

‘‘ठीक है। यदि सायंकाल तक कोई मित्र न मिला चक्रधरपुर से बाहर निकल जाना। रात के समय तुम घूम नहीं सकोगे।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book