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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


चन्द्रवंशीय नहुष ने इन्द्र को पराजित कर देवलोक अपने अधिकार में कर लिया और कश्मीर को अपने अधिकार में करने का यत्न करने लगा। नहुष की उच्छृंखलता से क्रुद्ध हो, प्रजा ने उसकी हत्या कर दी और वहाँ पुनः इन्द्र को राजा बना दिया। उस समय देवलोक और कश्मीर, दोनों देशों के अधिकारियों ने सन्धि कर ली और दोनों राज्य एक हो गये।

इस पर भी चन्द्रवंशीय क्षत्रियों ने ब्रह्मवर्त, वाह्नीक देश और सरस्वती, यमुना तथा गंगा के तटवर्ती देशों में अपने अधिकार स्थापित किये हुए थे। सूर्यवंशीय क्षत्रिय काशी, मिथिला, अंग और अनंग देशों में चले गये। चन्द्रवंशीय क्षत्रियों को दक्षिण की ओर बढ़ने में सुगमता प्रतीत हुई और वे मार-काट मचाते हुए नर्मदा के तट पर अपना राज्य स्थापित करने में सफल हो गये।

चन्द्रवंशीय क्षत्रिय, यद्यपि अपना आचार-व्यवहार सूर्यवंशीय क्षत्रियों से भिन्न रखते थे, इस पर भी वे परमात्मा का तथा आत्मा का अस्तित्व और उसका आवागमन मानते थे। वे वेद-वेदांत पढ़ते थे, परन्तु वे इसके अर्थ सूर्यवंशियों तथा देवताओं से भिन्न लगाते थे। चन्द्रवंशियों के यज्ञादि भी उनसे भिन्न थे।

सरस्वती के तट पर गान्धारों से युद्ध करते हुए सत्यवती का शान्तनु से बड़ा पुत्र चित्रांगद मारा गया तो विचित्रवीर्य के अभी अल्पायु होने से राजकुमार देवव्रत, जो अब भीष्म के नाम से विख्यात हो रहा था, राज्य-कार्य करने लगा। उसने पुनः गान्धारों को मार-मारकर गान्धार देश में, जो सिन्धु नदी से पश्चिम में था, धकेल दिया।

जिस समय मुझको कश्मीर में भेजा गया था, उस समय गान्धार, कश्मीर पर दृष्टि रखे हुए थे। इस समय प्रयागराज से लेकर कामभोज और सुमेरु से भी पार तक चन्द्रवंशी राज्य कर रहे थे। इन सब देशों के पूर्व-निवासी असुर, दानव, नाग, इत्यादि सर्वथा विनाश को प्राप्त हो चुके थे।

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