उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
तृतीय परिच्छेद
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चक्रधरपुर मधुमती नदी के तट पर बसा हुआ एक विशाल तथा सुन्दर नगर था। नदी के पश्चिमी तट पर नदी के साथ-साथ लम्बे-लम्बे घाटों और ऊँची अट्टालिकाओं तथा मन्दिर-कलशों से भरपूर यह नगर पूर्ण कश्मीर प्रदेश में अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं रखता था।
जब महर्षि कश्यप ने यहाँ स्थित सागर का जल निकालकर इस देश को बसाया, तो उन्होंने इस देश को नाग जाति के हाथों सौंप दिया। नाग कश्यपजी के यजमान थे।
नागों ने कई सौ वर्षों तक इस देश पर राज्य किया, परन्तु वे न तो इसकी उपजाऊ भूमि को उत्पादन योग्य बना सके, न ही वे अच्छे गृह बना सके। वे स्वयं भूमि के नीचे सुरंगों को खोदकर अथवा पर्वतों की कन्दराओं में रहते रहे।
नागों को उत्तर से आ रहे आर्यों ने पराजित कर वहाँ अपना राज्य स्थापित कर लिया। उस समय आर्य लोगों ने देवताओं से सन्धि कर ली थी।
आर्यों ने पहले तो इस देश को फल-फूल तथा अन्न-अनाज से भरपूर किया, तदनन्तर यहाँ नगर बसाये। यह चक्रधरपुर इसी काल का बसा हुआ नगर था।
उसके पश्चात् चन्द्रवंशीय क्षत्रिय लोग ब्रह्मवर्त की ओर अग्रसर हुए। जहाँ उन्होंने कामभोज, गान्धार में अपना शासन स्थापित कर लिया, वहाँ वे कश्मीर पर अधिकार करने के लिए यत्न करने लगे।
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