उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘पिताजी! धर्म की अवस्था तो मैं हस्तिनापुर में देख आया हूँ।’’ राज्य के आँकड़ों के अनुसार उस नगर में दस सहस्त्रवेश्याएँ रहती हैं। उन वेश्याओं के कारण पुरुष सन्तानोत्पत्ति के अयोग्य हो रहे हैं। उन पुरुषों की पत्नियाँ अपरिचित पुरुषों का शुक्र, मूल्य दे, प्राप्त करती हैं और सन्तानोत्पत्ति कर रही हैं।
‘‘जब राजा तथा रानियों की यह अवस्था है तो जन-साधारण के विषय में क्या कहा जा सकता है? यथा राजा तथा प्रजा।’’
‘‘यहाँ से तुम कहाँ जा रहे हो?’’
‘‘राजकुमार देवव्रत ने मुझको चक्रधरपुर जाने की आज्ञा दे दी है।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मेरे वहाँ पहुँचने पर मुझको कार्य करने के लिए दिया जायेगा।’’
‘‘मेरा विचार है कि तुमको सेवा-कार्य से निकाल दिया गया है।’’
‘‘जो कुछ भी हो। यह तो मैं वहाँ जाकर विचार करूँगा।’’
‘‘वहाँ किसके पास ठहरोगे?’’
‘‘यह भी वहाँ जाकर ही निश्चय करूँगा।’’
‘‘अच्छा देखो, मेरे एक मित्र वहाँ रहते हैं। वे नाग जाति से सम्बन्ध रखते हैं। यदि तुम उनके घर पर रहना चाहो तो तुमको उनके नाम एक पत्र दे सकता हूँ।’’
‘‘पिताजी! दे दीजिए। यदि आवश्यकता पड़ी तो उस पत्र का उपयोग कर लूँगा।’’
इस पर पिताजी ने अपने मित्र सोमभद्र के नाम एक पत्र दे दिया।
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