लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘इस अवस्था में,’’ राजकुमार ने आज्ञा दे दी, ‘‘संजयजी! आप कल प्रातःकाल यहाँ से प्रस्थान कर दें। तपोवन में गंगा के किनारे माताजी के सुपुत्र महर्षि कृष्ण द्वैपायनजी तपस्या और स्वाध्याय में लीन है। उनको जाकर कहिये कि माताजी उनको इस कार्य के निमित्त बुलाती है।’’

‘‘जैसी आज्ञा हो महाराज!’’

‘‘हाँ, और महर्षिजी को यहाँ भेजकर आप कश्यप-नगरी चक्रधर-पुर में चले जाइये और वहाँ पर मेरे आदेश की प्रतीक्षा करियेगा।’’

मुझको ऐसा प्रतीत हुआ कि राजकुमार अभी भी, मेरे द्वारा उनके पूर्वजों के व्यवहार पर की गई आलोचना के कारण मझसे क्रुद्ध हैं और अब मुझको सेवा-कार्य से पृथक् कर रहे हैं। इस पर भी मैंने केवल यह कहा, ‘‘मैं कल ब्रह्म मुहूर्त में प्रस्थान कर दूँगा।’’

इस पर सब उठ खड़े हुए। मैंने एक दृष्टि महारानियों पर डाली। उनकी आँखों से अश्रु ढुलक रहे थे।

तदुपरान्त मैं अपने निवास-गृह को लौट पड़ा। वहाँ पहुँचने पर मैंने देखा कि सुरराज देवेन्द्र का एक दूत आकर बैठा हुआ मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। मैं उस व्यक्ति को देवलोक में देख चुका था। उसने मुझे सुरराज का एक पत्र दिया। पत्र इस प्रकार था–

‘‘हम आपके कार्य से बहुत प्रसन्न हैं। आप महर्षि वेदव्यासजी को राजमाता सत्यवती का सन्देश देकर अपने पिता के आश्रम पहुँच जायें। चक्रधरपुर जाने से पूर्व उनसे मिलना आवश्यक है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book