उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘इसमें अस्वाभाविक क्या है?’’
‘‘पति-पत्नी सम्बन्ध मन की भावना, परस्पर लगन, सहचारिता और तदनन्तर सन्तानोत्पत्ति के लिए होता है। प्रथम तीन बातों को छोड़कर सन्तानोत्पत्ति तो पशुओं का-सा व्यवहार रह जाता है। काम का आवेग पहले होना चाहिए और पीछे सम्भोग। अन्यथा सन्तान उत्पत्ति के लिए सम्भोग तो पशुओं से भी निम्नकोटि की बात होगी।’’
‘‘तो यदि महारानी जी सदा के लिए आपकी पत्नी बनना स्वीकार कर लें तो आप मान जायेंगे क्या?’’
‘‘नहीं, मैं किसी कुँवारी कन्या से विवाह करना चाहता हूँ और वह भी अभी नहीं।’’
‘‘कब विवाह करेंगे?’’
‘‘जब मेरे पास जीविकोपार्जन के साधन उपस्थित हो जायेंगे।
अभी तो मैं केवल भोजन-वस्त्र पर ही यहाँ पड़ा हूँ।’’
‘‘आपकी जीविकोपार्जन का प्रबन्ध किया जा सकता है।’’
‘‘राजमाता द्वारा न?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘पर क्या उन्होंने मुझसे नियोग करने की स्वीकृति दे दी है?’’
‘‘नहीं, अभी नहीं। उन्होंने तो इसका विरोध किया है। परन्तु राजकुमार इसके पक्ष में है।’’
‘‘माताजी के विरोध का क्या आधार है?’’
वह दासी कुछ क्षण विचारकर बोली, ‘‘यदि क्षमा करें तो कहूँ?’’
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