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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


देवव्रत ने उसको देख पूछा, ‘‘यह स्त्री कहती है कि तुम इसके विवाहित पति हो?’’

‘‘हाँ, महाराज! वह मेरी पत्नी है?’’

‘तुम्हारे इससे कोई सन्तान है?’’

‘‘जी, कोई नहीं।’’

‘‘तुम्हारा किसी वेश्या से भी सम्बन्ध रहा है क्या?’’

‘‘एक है महाराज! जिससे मैंने गन्धर्व-विवाह किया था। उसका नाम स्वरूपा है।’’

‘‘तुम्हारे साथ गन्धर्व-विवाह से पूर्व वह वेश्यावृत्ति करती थी क्या?’’

‘‘जी, हाँ करती थी।’’

‘‘क्या अब भी वह तुम्हारे अतिरिक्त किसी अन्य से सम्बन्ध रखती है?’’

‘‘मैं नहीं जानता महाराज! मेरे विवाह के पश्चात् वह मेरे साथ बहुत ही प्रेममय व्यवहार रखती रही है।’’

‘‘वह कहाँ रहती है?’’

‘‘उसका अपना गृह है। अब भी उसी में रह रही है।’’

‘‘उसी घर में वह वेश्यावृत्ति करती थी क्या?’’

‘‘जी!’’

‘‘उसकी कितनी सन्तान हैं?’’

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