उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘तीन है। तीनों पुत्र हैं और तीनों का जन्म मेरे साथ विवाह होने के पश्चात् हुआ है।’’
‘‘उनको भीतर बुलाओ।’’
तीनों बालक भीतर आ गये। एक सात वर्ष का था, दूसरा चार वर्ष का और तीसरे की आयु लगभग दो वर्ष की थी।
राजकुमार ने तीनों को अपने समीप खड़ा कर उनका नाम पूछा। सबसे बड़े का नाम सौम्य था, मँझले का विनीत और छोटे का शेष था। इस पर उस गणिका को भी बुला लिया गया। पूछे जाने पर गणिका ने बताया, ‘‘जो इनका पिता बनता है, उसकी बात माननीय होनी चाहिए।’’
‘‘वह तुम्हारे सम्मोहन में अनृत भाषण भी तो कर सकता है।’’
‘‘मैं भी अनृत भाषण कर सकती हूँ। तो इससे क्या हुआ?
जब ये सज्जन कहते हैं कि ये इनके पिता है, मैं इनकी माँ होकर कहती हूँ कि ये इनके पिता हैं, तब किसी अन्य को क्यों आपत्ति होनी चाहिए?’’
‘‘इसलिए कि तुम दोनों के अनृत भाषण करने से एक तीसरे व्यक्ति को हानि हो रही है।’’
‘‘उसके खाने-पहनने की व्यवस्था कर दी जाये।’’
‘‘यह तो होगा ही, परन्तु दोनों न्यायालय में आकर अनृत भाषण कर रहे हो, इस कारण तुम दोनों को दण्ड दिया जायेगा।’’
‘‘क्या महाराज?’’
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