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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


मुझको इस दलाल की बात युक्तियुक्त प्रतीत नहीं हुई, परन्तु मैं उससे विवाद करना नहीं चाहता था। मैं यहाँ के विषय में उससे अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता था। अतः मैंने पूछा, ‘‘कितनों को इस प्रकार इच्छित सन्तान मिल जाती है?’’

‘‘यह देवता इतना योग्य चिकित्सक है कि सौ में से नब्बे स्त्रियों को सन्तान हो जाती है। पुत्र प्राप्त करने वालों में उचित पूर्व-कर्म करने के पश्चात् अस्सी प्रतिशित फल प्राप्त हो जाता है।’’

‘‘जिनको सन्तान नहीं होती, उनको क्या धन वापस कर दिया जाता है?’’

‘‘नहीं, धन वापस नहीं होता। दूसरी बार सिंचन आधे मूल्य पर किया जाता है और उस पर भी फल न मिले तो पुनः आधे मूल्य पर। तीन बार सिंचन करने पर भी जिसके गर्भाधान न हो, उसको रुग्ण समझ छोड़ दिया जाता है। ऐसी स्त्रियाँ बहुत कम होती हैं। प्रायः सौ में से एक-दो से अधिक नहीं। मूल्य तो उनको भी वापस नहीं किया जाता।’’

‘‘इस प्रकार जो सन्तान उत्पन्न होती है, क्या वह स्वस्थ सबल और मेधावी होती है?’’

‘‘इसके लिए कोई वचन नहीं दिया जाता।’’

मैं यह सब-कुछ सुनकर चकित हो रहा था। काफी देर तक मैं गम्भीर विचार में ग्रस्त चलता रहा। जब हम उस मार्ग को छोड़कर नगर के एक दूसरे मार्ग पर आने लगे तो मेरे साथी ने पूछा, ‘‘आप विक्रय करेंगे अपना शुक्र?’’

‘‘नहीं, वह इतना सस्ता विक्रय नहीं होगा।’’

‘‘ओह! तो आपके विचार में एक सौ रजत इसका मूल्य कम है?’’

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