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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘इसलिए मैंने उससे कहा, ‘मुझे आपके कथनानुसार यहाँ से चलने में आपत्ति यह है कि मैं बिना सामान के यहाँ से जा नहीं सकता। इस कारण ‘पासपोर्ट’ का लेना बहुत आवश्यक है।’’

‘‘तुम्हें मिल नहीं सकता।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि तिब्बत सरकार बाहर से आने वालों को पसन्द नहीं करती। केवल वे लोग ही वहाँ जा सकते हैं, जिनका सीधा किसी सरकारी कार्य में सम्बन्ध हो।’’

‘‘मैंने पासपोर्ट के लिए प्रार्थना-पत्र दिया हुआ है। मैं उसका परिणाम जानना चाहता हूँ।’’

‘‘कब तक उसका उत्तर मिलने की सम्भावना है?’’

‘‘मेरे विचार में तो एक सप्ताह और लग ही जायेगा।’’
‘‘यदि यह प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई तो बिना किसी को कुछ कहे मेरे पास चले आना।’’

‘‘उस अवस्था में मैं विचार करूँगा। कि मुझे जाना चाहिए अथवा नहीं।

‘‘न जाने का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। आप चलेंगे। मैं आपका मार्ग-दर्शन करूँगा और आप गुरुजी के चरणों में बैठकर स्वयं को पहचान जायेंगे।’’

‘‘मैं उसका कथन अज्ञान पर आधारित ही समझता था। अन्त में मन में यह विचार करता हुआ कि इस लामा को अपने मन की दृढ़ता का परिचय दूँगा, घर लौट आया।

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