उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘हमारे देश में गणतन्त्र पद्धति है। जो सब लोग, निर्णय करते हैं, वही धर्म कहलाता है। अतएव वहा की सब बातें, जनमत के अनुकूल होने से धर्मानुकूल ही कहनी चाहिए।’’
यदि वह एक अपरिचित व्यक्ति न होता तो मैं उसकी बात पर हँस पड़ता। मैंने शान्त होकर पूछा, ‘‘आप आधारभूत धर्म की बात कर रहे थे न?’’
‘‘हाँ, हम आधारभूत धर्म उसी को मानते हैं, जो बहुमत-सम्मत हो। यहाँ प्रजा पर शासन होता है, वहाँ प्रजा का शासन है।’’
‘‘यदि बहुमत तथा अल्पमत में मतभेद हो जाये तब क्या होगा?’
‘‘बहुमत की बात मानी जायेगी और अल्पमत को माननी पड़ेगी।’’
‘‘ठीक है। यदि बहुमत यह निर्णय कर दे कि स्त्रियाँ बेची जा सकती हैं और जिसके घर में सज्ञान लड़की हो, वह उसकी बोली बोल दे, तो यह भी अल्पमत वालों को माननी पड़ेगी? अथवा यदि बहुमत यह निश्चय करे कि जिन्होंने बहुमत के साथ सम्मति नहीं दी, उनका स्त्री-वर्ग तथा सम्पत्ति छीन ली जाये, तो क्या अल्पमत यह मान सकेगा?’’
इस पर वह विशालकाय व्यक्ति मेरा मुख देखने लगा। वास्तव में ये दोनों बात उसके देश में प्रचलित थी। कदाचित् वह इनको पसन्द भी नहीं करता था। इस पर भी वह इनको बुरा नहीं कह सकता था। ऐसा प्रतीत होता था कि वह भयभीत हो गया था कि कहीं अपने राज्य के विरुद्ध कुछ कहकर कोई अपराध न कर बैठे। अब वह चुपचाप भोजन करने लगा।
जब हम भोजन कर उठे तो उसने हाथ-मुख धोकर कह दिया, ‘उत्तरी भारत में लोग तर्क करना बहुत जानते हैं।’’
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