उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
|
137 पाठक हैं |
हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘इसको भविष्वाणी भी कहा जा सकता है। इस पर भी इसको यदि अनुभव कहूँ तो अधिक उचित होगा।’’
मैंने उस व्यक्ति से और अधिक जानकारी प्राप्त करने का यत्न नहीं किया। मुझको भय था कि कहीं यह मुझसे और प्रश्न न करने लगे जिससे या तो मुझको असत्य भाषण करना पड़े अथवा वर्तमान राज्य की निन्दा का समर्थन करना पड़े। इस कारण मैंने बात राजनीति से व्यापार पर बदल दी। मैंने पूछ लिया, ‘‘आपके देश में इस वर्ष अन्न की उपज कैसी रही है?’’
वह व्यक्ति एकाएक वार्तालाप का विषय बदला जाता देख विस्मय में मेरा मुख देखने लगा। कुछ विचारकर कहने लगा, ‘‘बहुत अच्छी हुई है। इस वर्ष वर्षा उचित समय पर हुई थी। गोदावरी में तो बाड़ अत्यन्त वेग से आई थी।’’
‘‘यहाँ तो अच्छी उपज प्रतीत नहीं होती। वर्षा अच्छी होने पर भी उपज कुछ नहीं हुई।’’
‘‘इसमें कारण है। वह यह कि इस राज्य के लोग कामचोर हो गये है। यहाँ अच्छे-बुरे सब एक समान समझे जाते हैं। यहाँ धर्म की व्याख्या विचित्र है। आधारभूत धर्म का तो कोई नाम भी नहीं जानता। यहाँ धर्म वही है, जो राजाज्ञा से प्रचलित किया जाये।’’
‘‘तो क्या राजा धर्म-विपरीत आज्ञा भी देता है?’’
‘‘राजा को धर्म का ज्ञान ही नहीं। धर्म-विपरीत अथवा धर्मानुकूल की बात वह जानता ही नहीं।’’
‘‘और माद्र देश में धर्म का ज्ञान सबको है क्या?’’
|