उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
|
137 पाठक हैं |
हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘परन्तु अब इस डूबती नौका में बैठकर क्या करियेगा?’’
‘‘मैं समझता हूँ कि जब तक राजकुमार देवव्रत जीवित हैं, तब तक यह नौका डूब नहीं सकती।’’
‘‘देवव्रत विवाह करेगा नहीं। वह प्रतिज्ञाबद्ध है। इस प्रकार यह वंश उत्तराधिकारी के अभाव में विनाश को प्राप्त होगा।’’
‘‘उत्तराधिकारी तो मिल सकते हैं।’’
‘‘कैसे?’’
‘‘इस राज्य को गणराज्य में परिणत करने से।’’
वह विशालकाय व्यक्ति कहने लगा, ‘‘गणराज्य यहाँ नहीं बन सकेगा। इन चन्द्रवंशियों के मस्तिष्क में से साम्राज्य की खुमारी कैसे उतर सकेगी? जब तक इनका अभिमान चूर करने वाला, प्रजा में से कोई उत्पन्न नहीं होता, तब तक यह साम्राज्य मिटकर गणराज्य बन सकना कठिन है। साथ ही मैं तो यह कर रहा हूँ कि यह वंश अब समाप्त होगा।’’
‘‘श्रीमान् कहाँ से पधारे हैं?’’
‘‘मैं तो दक्षिण के माद्र देश में आया हूँ। मेरा राज्य से कुछ काम नहीं है।’’
‘‘इस पर भी आप राज्य-कार्य में रुचि तो रखते हैं?’’
‘‘मेरा इस देश में आना-जाना बना रहता है। इससे यहाँ की बहुत-सी बातों का ज्ञाता हूँ।’’
‘‘तभी आपने यह भविष्यवाणी कर दी है।’’
|