लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।

5

जब मैं हस्तिनापुर पहुँचा तो वहाँ कोहराम मचा हुआ था। विचित्रवीर्य का देहान्त हो चुका था। सत्यवती विचित्रवीर्य की माता अत्यन्त शोक में अपने दुर्भाग्य पर, अपने बाल नोच रही थी। विचित्रवीर्य की पत्नियाँ अम्विका और अम्बालिका तो शोक में ऐसी पड़ी थीं, जैसे वज्राघात से कोई वृक्ष धराशायी हो गिर पड़ता है।

देवव्रत भी अति चिन्तित और गम्भीर हो वंश के अंधकारमय भविष्य से उत्साहहीन पड़ा था। वह मन में विचार कर रहा था कि इस पुरातन और वैभशाली वंश का क्या बनेगा?

नगर तथा राज्य-भर में शोक व्याप्त हो रहा था। घर-घर में कुरुवंश की इस हीन अवस्था पर चर्चा चल रही थी।

मैं पंथागार में गया तो वहाँ भी देश-विदेश से आए यात्रियों में इसी राज्य वंश के विषय में चर्चा हो रही थी। हम भोजनशाला में भोजन कर रहे थे। मेरे समीप बैठे एक विशालकाय कृष्ण वर्ण और भंयकर आकृति के पुरुष ने मुझसे पूछ लिया, ‘श्रीमान् कहाँ से पधारे हैं?’’

‘‘देवलोक से।’’

‘‘तो आप देवता हैं?’’

‘‘नहीं, मैं मनु सन्तान हूँ। मेरे पिता का गन्धमादन पर्वत पर आश्रम है।’’

‘‘ओह! आप यहाँ किस कार्य से पधारे हैं?’’

‘‘राजप्रसाद में किसी सेवा-कार्य पर नियुक्त की आशा से।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book