उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘एक और समाचार है। नोरा दो मास की गर्भवती है। मैं जानता हूँ कि एक लड़का होगा इस पर भी मैं अपनी भविष्य में जानने की योग्यता का प्रदर्शन उसके सामने नहीं करता। मेरा यह विचार है कि पती-पत्नी में समन्वय तब ही रह सकता है, जब दोनों अपने आपको एक दूसरे के समान समझें। इस कारण मैं सदा वैसा ही सांसारिक व्यावहारिक बना रहता हूँ, जितनी वह है। वह नहीं जानती कि मैं क्या हूँ, कितना बड़ा हूँ और विद्वत्ता तथा कार्यपटुता में उससे अधिक हूँ। जब कभी भी वह अपनी अयोग्यता अथवा अनुभवहीनता के कारण कुछ भूल करने लगती है, तो मैं उसको वह भूल करने देता हूँ और फिर जब वह उस भूल को अनुभव करती है तो मैं ऐसा प्रकट करता हूँ कि मुझको भी उसकी भूल का तब ही ज्ञान हुआ है।
‘‘मैं अपने भूतकाल की ज्ञान-प्राप्ति का ऋण उतारने का यही ढंग समझ रहा हूँ कि मैं अपने उस समय के ज्ञान को लेखबद्ध कर दूँ, यह ठीक है कि उस काल पर महर्षि कृष्ण द्वैपायन जी ने एक लाख श्लोकों का ग्रन्थ लिखा है, परन्तु अब भी इसके अतिरिक्त बहुत कुछ है। श्रीव्यास जी ने तो केवल वही कुछ लिखा है, जो कुछ लिखना उनको अभीष्ट था अथवा जो कुछ उनको ज्ञात था। उनके ग्रंथ में बहुत-सी लिखी हुई बातें तो मेरी ही बतायी हुई हैं, यद्यपि जिस ढंग से मैंने बतायी थीं, वैसी नहीं है। साथ ही ऐसी बातें जो मैंने उनको बतायी थीं, और उन्हें लिखना उन्होंने उचित नहीं समझा, बहुत हैं। महर्षिजी के शिष्यों ने भी उस पुस्तक को लिखने के उद्देश्य को भूलकर उसमें बहुत-सी बातें लिख दी हैं, जो असम्बद्ध हैं और पुस्तक के आकार को बढ़ाने वाली हैं।
‘उस योग-विद्या के प्रति जिसमें मुझकों वह अतीत काल की बातें स्मरण हो आई हैं, अपना कर्तव्य पालन कर यह साथ वाला विवरण आपको भेज रहा हूँ। यह मेरे पूर्ण विवरण का एक छोटा-सा भाग है। थोड़ा-थोड़ा प्रतिदिन लिखता हूँ और ज्यों-ज्यों एकत्र होता जायेगा, भेजता रहूँगा।
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