उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘इससे हमारी परस्पर बात खुल गई। उसकी गाड़ी आई तो मुझको साथ ले मेरे घर छोड़ने चली आई। मेरी गाड़ी आने में विलम्ब हो गया था।
‘‘हमने इकट्ठे ही मैट्रिक किया और इकट्ठे ही कॉलेज में प्रवेश लिया। दोनों ने एम.ए. इतिहास लेकर ही पास किया। इससे हमारी मित्रता बढ़ती गई। अब संयोग देखिए कि दोनों का विवाह भी इकट्ठा हुआ है और अपने-अपने घरों से इकट्ठी निकली हैं।’’
मैं यह सब संयोगमात्र ही समझता था। इस पर भी यह संयोग था विचित्र! जब मैं बम्बई से माणिकलाल के साथ आ रहा था, तब मुझको स्वप्न में भी यह प्रतीत नहीं हुआ था कि माणिकलाल के समीप पहुँच जाऊँगा।
मध्याह्न भोजन के पश्चात् मुझको माणिकलाल से अकेले में बात करने का अवसर मिला। उसने इधर-उधर की बातें, जो वह मेरे साथ कर रहा था, बन्द कर कहा, ‘‘देखिए वैद्यजी! मैं आज ही हवाई जहाज से जा रहा हूँ। जब हम पहली बार रेलगाड़ी में मिले थे, तब मैंने आपसे कहा था कि हमारे पाँच सहस्त्र वर्ष के पश्चात् पुनः मिलने और परस्पर एक दूसरे को पहचानने में कुछ रहस्य अवश्य है। वह रहस्य क्या है? यह करना अभी कठिन है। परन्तु मैं आपको उस काल की कुछ बातें जो लिखित में नहीं आईं, बताना चाहता हूँ। वे मैं आपको लिखा करूँगा। आप उन पत्रों को सुरक्षित रखियेगा। यह बात आपमें और मुझमें हैं। इसको अभी प्रकट करने में न तो कोई प्रयोजन है और न ही किसी प्रकार का लाभ। यह बात आज हुई है। मैं नोरा को लेकर ‘कश्मीर ऐम्पोरियम’ गया था। वहाँ उसने एक पोशाक खरीदी है। उस पोशाक को देख कर मेरे मस्तिष्क का एक केन्द्र जाग्रत हो उठा है।
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