उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
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दिल्ली हम सब इकट्ठे ही आये। माणिकलाल ने बारातियों के लिए पूरे दो डिब्बे फर्स्ट क्लास के रिजर्व कराये हुए थे। हमारी सोटें मेरी और मेरी धर्मपत्नी की, साथ ही मेरे साले और उसकी धर्मपत्नी की, अलग डिब्बे में रिजर्व थीं।
हम दिल्ली उतर गये। माणिकलाल और नोरा भी दिल्ली तक गाड़ी में आये थे। वे भी उतर गये। शेष बाराती बम्बई जाने के लिये गाड़ी में ही बैठे रहे।
मैं माणिकलाल, नोरा, नरेन्द्र और सन्तोष को अपने घर ले आया। वहाँ स्नान तथा भोजनादि का प्रबन्ध था। भोजन के पश्चात् माणिकलाल नोरा को लेकर कुछ आवश्यक सामान खरीदने के लिए बाजार चला गया।
सन्तोष नोरा के विषय में बताने लगी। उसने कहा, ‘‘नोरा हमारे स्कूल में सातवीं श्रेणी में प्रविष्ट हुई थी। मैं भी उसी श्रेणी में थी। पहले ही दिन जब उपस्थिति के समय नोरा का नाम पुकारा गया तो मुझको कुछ विचित्र-सा लगा। मैंने समझा कि उनका नाम नूरी है, और भूल से हमारी अध्यापिकाजी ने नोरा पुकारा है। स्कूल के पश्चात् मैं और वह, दोनों अपने-अपने घर से आने वाली गाड़ियों की प्रतीक्षा में खड़ी थीं कि मैंने पूछ लिया, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘क्यों?’’ उसने मुस्कराते हुए पूछा।’’
‘‘अध्यापिका ने नोरा कहा था न। यह कुछ विचित्र-सा है। ऐसा नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना।’’
‘‘तो अब सुन लिया है न?’’ इतना कहकर वह हँसने लगी।’’
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