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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘मैं वहाँ कभी नहीं गया। इस पर भी पिताजी के आश्रम में वहाँ के समाचार आया करते थे और उनके प्रकाश में वे हमको अर्थनीति पढ़ाया करते थे।’’

‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि तुमको दस वर्ष पुरानी सूचना है। चित्रांगद युद्ध में मारा जा चुका है। भीष्म ने गांधार से सन्धि कर ली है। चित्रागंद के छोटे भाई विचित्रवीर्य का सत्रह वर्ष की आयु में काशिराज की दो कन्याओं, अम्बा और अम्बालिका से विवाह हो गया है और वह अपनी सुन्दर और युवा पत्नियों से भोग-विलास में रत रहने के कारण रुग्ण रहने लगा है। शीघ्र ही वह परलोक-गमन कर जायेगा। इसके पश्चात् जिस अनीति का जन्म नहुष के समय में हुआ था, जिसका पालन ययाति ने पुत्र का यौवन उधार माँगकर किया था, जिस अनीति का पालन दुष्यन्त ने अपनी पत्नी शकुन्तला को दुष्ट तपस्विनी कहकर किया था, जिस अनीति को शान्तनु ने गंगा द्वारा पुत्रों की हत्या करते देख चुप रहने से स्वीकार किया था तथा जिस अनीति को, उसी शान्तनु ने वृद्धावस्था में एक अल्पायु की निषाद-कन्या से विवाह कर अपने योग्य तथा युवा पुत्र को अविवाहित रहने और राज्य ग्रहण न करने पर विवश कर, प्रश्रय दिया था, वह अनीति अब फलित होने वाली है। हम समझते हैं कि यह वंश विनाश को प्राप्त होगा। इसके स्थान पर देवताओं के वंशज राज्यासीन होगें।’’

‘‘यदि तुम कुछ कर सकते हो तो वहाँ जाकर इस विनाश की प्रक्रिया को तीव्र कर दो। इससे तुम्हारा कल्याण होगा, इस परिवार का कल्याण होगा और प्रजागण का भी कल्याण होगा।’’

‘‘संजय! तुम प्रतिवर्ष वहाँ के कार्य की गतिविधि यहाँ आकर बता जाया करो और इसके उपलक्ष्य में तुम्हें दस सहस्त्र स्वर्ग प्रतिवर्ष मिल जाया करेगा। इस स्वर्ग से तुम्हारा और तुम्हारे पिता के आश्रम का कार्य चल सकेगा।’’

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