ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
कुछ और प्रश्न हैं।
एक मित्र ने पूछा है कितने समय में हम ध्यान को उपलब्ध हो सकेंगे?
कोई सामान्य उत्तर नहीं हो सकता है। क्योंकि ध्यान को कितने समय में उपलब्ध हो सकेंगे, यह मुझ पर नहीं, आप पर निर्भर है। और इसके लिए कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि सभी लोग एक ही समय में उपलब्ध हो सकें। आपकी तीव्रता, आपकी प्यास, आपकी लगन, आपकी अभीप्सा, इस सब पर निर्भर करेगा। एक क्षण में भी उपलब्ध हो सकते हैं, और पूरे जीवन में भी न हों। एक क्षण में भी, तीव्र प्यास का एक क्षण भी, इंटेसिटी का एक क्षण भी जीवन को बदल सकता है। और नहीं तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे--कोई तीव्रता नहीं है, कोई सीरियसनेस, कोई गंभीरता नहीं है कि उसे हम प्यास की तरह पकड़ें।
एक आदमी प्यासा है तो उसकी पानी की खोज और बात है। और एक आदमी प्यासा नहीं है, उसकी पानी की खोज बिलकुल दूसरी बात है। प्यास तो खोज लेगी पानी को। और जितनी तीव्र होगी, उतनी तीव्रता से खोज लेगी।
एक पहाड़ी रास्ते पर एक यात्री जाता था। एक बूढ़े आदमी को बैठा हुआ देखा उसने और कहा, गांव कितनी दूर है और मैं कितने समय में पहुँच जाऊंगा, वह बूढ़ा ऐसे बैठा रहा, जैसे उसने न सुना हो या बहरा हो। वह यात्री हैरान हुआ। उस बूढ़े ने कुछ भी न कहा। यात्री आगे बढ़ गया, कोई बीस कदम गया होगा, वह बूढ़ा चिल्लाया--सुनो, एक घंटा लगेगा। उस आदमी ने कहा, यात्री ने कि अजीब हो, मैंने जब पूछा था, तुम चुप रहे। उसने कहा, मैं पहले पता तो लगा लूं कि तुम चलते कितनी रफ्तार से हो। तो जब बीस कदम मैंने देख लिए कि कैसे चलते हो, तो फिर मैं समझ गया कि एक घंटा तुम्हें पहुँचने में लग जाएगा। तो मैं क्या उत्तर देता पहले, उस बूढ़े ने कहा, जब मुझे पता ही नहीं कि तुम किस रफ्तार से चलते हो। तुम्हारी रफ्तार पर निर्भर है गांव पर पहुँचना--कितनी देर में पहुँचोगे, इसलिए मैं चुप रह गया।
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