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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

हमारे चेतन मन में जो-जो वृत्तियां उठती हैं, अगर हम एक-एक वृत्ति को पकड़कर उसका पीछा करें तो वह वृत्ति जहाँ से जन्मती है, उस अंधेरे कमरे में हमको पहुँच जाना पड़ेगा। अनकांशस माइंड में पहुँचने का और कोई न रास्ता रहा है, न हो सकता है। एक-एक वृत्ति को हमें पकड़ लेना है।

एक कमल का फूल एक तालाब पर खिला है। फूल ऊपर दिखाई पड़ता है। उस फूल के नीचे--कहाँ से वह फूल आया है, कहाँ उसकी जड़ें हैं, वह कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। सिर्फ फूल दिखाई पड़ता है। अगर इस फूल का हम अनुसरण करें, खोज करें, कहाँ से यह निकला है तो हम धीरे-धीरे उस फूल की डंडी को पकड़कर वहाँ पहुँच जाएंगे, नीचे कीचड़ में, जहाँ उसकी जड़ें छिपी हैं।

क्रोध तो ऊपर आया हुआ फूल है। प्रेम भी ऊपर आया हुआ फूल है। ईर्ष्या भी ऊपर आया हुआ फूल है। इसको हम पकड़ लें और इसके पीछे चलना शुरू करें। इसके पीछे उतरते चलें, उतरते चलें तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे हम वहाँ पहुँच जाएंगे, जहाँ इसकी जड़ें हैं। जहाँ से यह पैदा हुआ है।

तो मनुष्य अगर अपनी वृत्तियों का अनुसरण करे, दमन नहीं। चित्त वृत्ति का दमन नहीं-- चित्त वृत्ति का अनुसरण, चित्त वृत्ति का पीछा, चित्त वृत्ति के पीछे-पीछे जाएं तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे वह अपने गहरे अचेतन मन के तलों तक पहुँच जाएगा। और उसके साथ ही, निरीक्षण के साथ वह रोशनी पहुँच जाएगी, जो देखती है।

और आपको पता है कि अगर आप जड़ तक पहुँच जाएं किसी चीज के तो कितनी आसान बात है। अगर आपको लगता हो यह फूल अवांछनीय है- -यह नहीं चाहिए, यह दुर्गंध फैलाता है, कांटे वाला है तो एक झटका और फूल खतम हो गया हमेशा के लिए। लेकिन ऊपर से आप फूल को काटते रहे रोज, हजार बार काटे, आप जितनी बार काटेंगे, उतनी बार एक डंडी की जगह दो डंडियां निकल आएंगी। अब दो फूल खिलेंगे, पहले एक ही फूल खिला था।

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