ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
मैं उठा क्यों नहीं?
आप निरीक्षण करेंगे तो पता चलेगा, जिस मन ने यह तय किया था, वह मन सोया हुआ था चार बजे और जिस मन ने यह खबर दी कि सोए रहो, वह दूसरा मन था। उसको आपके निर्णय का कोई भी पता नहीं था। अन्यथा यह कैसे हो सकता था। दिस मन ने निर्णय किया था, वही मन कैसे निर्णय तोड़ सकता था, और फिर सुबह वही मन कैसे पछता सकता था?
आदमी उलझ जाता है, क्योंकि उसे इसका कोई पता नहीं कि मन के अलग-अलग हिस्से निर्णय ले रहे हैं। जब आप निरीक्षण करेंगे क्रोध का, प्रेम का, घृणा का तो आप पाएंगे कि चेतन मन, कांशस माइंड से वे आते ही नहीं। वे तो बहुत नीचे गहरे अनकांशस से आते हैं।
तो उनके सूत्र को पकड़कर अगर आप खोज करेंगे, ये कहाँ से पैदा होते हैं ।
अगर हम एक वृक्ष की शाखाओं को पकड़कर खोज करने निकलेंगे, यह वृक्ष कहाँ से पैदा होता है, तो आज नहीं कल, आपको जमीन खोदनी पड़ेगी और जड़ों तक पहुँचना पड़ेगा। आपकी खोज जारी रहेगी तो आपको अन-अर्थ करना पडेगा, भूमि अलग हटानी पडेगी और तब आप पाएंगे कि दिखाई नहीं पड़ती थी जडें--वृक्ष वहाँ से आते हैं।
तो जब आप क्रोध की, प्रेम की, ईर्ष्या की खोज में निकलेंगे, अनुसरण करेंगे तो आप धीरे-धीरे-धीरे पाएंगे कि आप कांशस माइंड से हटकर अनकांशस में पहुँचने शुरू हो गए। और इसी पहुँचने में रोशनी पहुँचनी शुरू हो जाएगी, क्योंकि आपका जो मन निरीक्षण करता है, वही रोशनी है। तो जब आप पीछा करेंगे--एक आदमी अगर अपने घर में एक चोर का पीछा करे दीया लेकर, तो चोर जहाँ छिपा होगा अंधेरे कोने में, वहाँ खुद भी पहुँच जाएगा और साथ में दीया भी पहुँच जाएगा।
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