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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

तो क्रोध को, जब उठे तो निरीक्षण करें। और निरीक्षण करेंगे तो हैरान हो जाएंगे। निरीक्षण करते ही बहुत अदभुत तथ्य दिखाई पडने शुरू हो जाएंगे। लेकिन हमने कभी निरीक्षण किया नहीं है। या तो हम क्रोध से लड़े हैं और या क्रोध से हार गए और क्रोध के वश हो गए हैं। ये दोनों स्थितियां शुभ नहीं हैं। ये दोनों स्थितियां साधना में ले जाने वाली नहीं हैं।

तीसरी एक स्थिति है निरीक्षण की। न तो क्रोध का भोग, न दमन बल्कि एक तीसरा मार्ग, निरीक्षण। जो भी चित्त में उठे, उसका निरीक्षण। उसके प्रति जागना, उसके प्रति पूरी तरह अवेअर होना। क्या होगा इस तरह जागने से, इस तरह जागने से दो बातें होगी। एक तो क्रोध के प्रति जैसे ही जागेंगे, वैसे ही आप पाएंगे, क्रोध चेतन मन में पैदा नहीं होता। क्रोध चेतन मन के नीचे की मंजिल से आता है। चेतन मन ने तो बहुत बार निर्णय किए हैं कि मैं क्रोध नहीं करूंगा, लेकिन सब निर्णय रखे रह जाते हैं। जब कोई एक धक्का देता है, क्रोध खडा हो जाता है। पता नहीं चलता कि मैंने निर्णय किया था, कसम खाई थी, व्रत लिया था--क्रोध नहीं करना है। मेरे निर्णय, मेरी कसमें, कहाँ गईं वे? जिस मन ने ली थीं—क्रोध वहाँ से नहीं आ रहा, क्रोध बहुत नीचे से आ रहा है। उस मन को आपके व्रत का कोई भी पता नहीं है। उस मन को कोई पता ही नहीं है आपके व्रत  का। क्या आप मंदिर में जाकर और व्रत ले लिए हैं कि अब मैं क्रोध नहीं करूंगा।

जिसने यह कसम खाई है, वह मन दूसरा है। और जिस मन में क्रोध पैदा होता है, वह मन का बिलकुल दूसरा हिस्सा है। उस हिस्से को कोई खबर नहीं है। सांझ आप तय करके सोते हैं, कल सुबह चार बजे उठूंगा। सुबह चार बजे कोई आपके भीतर कहता है, सोए रहो, कोई उठने की जल्दी नहीं है। आज बहुत सर्दी है, फिर कल देखना। आप सो जाते हैं। सुबह उठकर आप पछताते हैं कि मैं उठा क्यों नहीं। मैंने तो तय किया था कि चार बजे उठना है।

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