ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
जगत में चित्त प्रवाहमान है, बहा जाता है। तो चित्त का बर्फ हो जाना, कांसनट्रेशन—हो सकता है। और चित्त बर्फ कब होता है, ठहरता कब है- जब नींद में चला जाता है। जब मूर्च्छा में चला जाता है, तब ठहर जाता है। फिर उसमें कोई गति नहीं होती। एक बेहोश आदमी के चित्त में कोई गति नहीं होती।
तो अगर बहुत तीव्र हम कोशिश करें चित्त को ठहराने की, ठहराने की, ठहराने की, पहले चित्त उपाय करेगा भागने का, भागने का। फिर हम नहीं माने, नहीं माने, प्रयास जारी रखें तो, तो एक रास्ता रह जाएगा चित्त के सामने कि वह सो जाए। सोते से ठहर जाए, मूर्च्छा आ जाए, हिप्नोसिस, नींद आ जाए, सम्मोहित हो जाए--तो ठहर जाएगा। निश्चित ही इस ठहरने में फिर दुःख का कोई पता नहीं चलेगा। क्योंकि जब चित्त मूर्च्छित है तो पता किसको चले।
अब तो हिप्नोसिस के द्वारा, सम्मोहन के द्वारा आपरेशन भी होते हैं--आपको ज्ञात होगा। अब तो यूरोप और अमरीका के बड़े-बड़े अस्पतालों में एक हिप्नोटिस्ट एक सम्मोहक भी रखते हैं। और बड़े सफल हुए प्रयोग। एक आदमी को बेहोश कर देते हैं, कांसनट्रेशन के द्वारा, एकाग्रता के द्वारा। उस आदमी को कहते हैं अपनी आँख को इस प्रकाश पर लगाओ। वह एक पांच मिनट तक आँख को प्रकाश पर देखता रहता है। फिर सारा चित्त उसका धीरे-धीरे-धीरे जमता जाता है और मूर्च्छित हो जाता है। जब वह मूर्च्छित हो जाता है तो उसे कह देते हैं मूर्च्छित होती अवस्था में, कि अब तुम आधा घंटे के लिए मूर्च्छित हो गए। आधा घंटे तक उसका चित्त फ्रोजन, जमा हुआ रह जाएगा। अब उसका पैर काट डालो, उसे पता नहीं चलेगा। उसका आपरेशन कर दो, उसे पता नहीं चलेगा।
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