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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

तो अनस्थीसिया के, बेहोश करनी वाली दवाओं का उपयोग अब वैज्ञानिक कहते हैं, बहुत जरूरी नहीं है। जैसे-जैसे हिप्नोटिज्म की हमारी सामर्थ्य, समझ बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे आदमी को बेहोश केवल एकाग्रता के द्वारा किया जा सकता है। फिर आपरेशन करना बहुत आसान है, क्योंकि वह आदमी मूर्च्छित है, उसे पता नहीं कि क्या हो रहा है--हाथ-पैर काटा जा रहा है या क्या किया जा रहा है।

यह जो स्थिति है, यह आनंद की स्थिति नहीं है। यह आत्म-विस्मरण की स्थिति है। इसको ही कोई आनंद समझ लेगा तो भूल में पड़ जाता है।

इसी भांति नाम-जप का भी परिणाम होता है। एकाग्रता का जो परिणाम है, वही नाम-जप का भी परिणाम है। एक ही शब्द को बार-बार दोहराने, बार-बार दोहराने से चित्त में ऊब पैदा होती है, बोरडम पैदा होती है। और ऊब की वजह से नींद पैदा होती है।

तो चाहे एकाग्रता से नींद ले आए और चाहे ऊब से। अगर आप यहाँ ऊब जाएं मेरी बातों से तो आप पाएंगे, आपको नींद आनी शुरू हो गई। बोरडम नींद ले आती है। इसलिए मंदिरों में लोग अक्सर सोए हुए नजर आते हैं। धर्म-सभाओं में लोग सोए हुए मिलेंगे। क्योंकि वही बातें, वही राम की कथा, बहुत बार सुनी जा चुकी है। उससे ऊब पैदा होती है। ऊब पैदा होने से नींद आ जाती है। तो राम, राम, राम, राम, राम, राम कोई जपता रहे तो ऊब पैदा होगी।

एक घटना मैंने सुनी है।

एक आदमी पर अदालत में मुकदमा चला। उसने एक स्त्री के सिर पर चोट कर दी थी और अकारण। एक बस में वह बैठा हुआ था, एक डबल-डेकर बस में, दो मंजिली बस में बैठा हुआ था, नीचे की मंजिल में और उसके पड़ोस में एक औरत बैठी हुई थी। अचानक उसने उस औरत के सिर पर हमला कर दिया। वह औरत बेहोश हो गई। वह औरत अपरिचित थी।

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