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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

एक मित्र ने पूछा है कि क्या मैं जप में, राम-नाम में, इन सबमें विश्वास नहीं करता हूँ?

क्या इनका कोई मूल्य और फायदा नहीं है?

एक और ने पूछा है, क्या एकाग्रता और ध्यान एक ही चीजें नहीं हैं?

थोड़ा इन पर चर्चा कर लें, उससे ध्यान को भी समझने में सुविधा होगी। फिर हम ध्यान के लिए बैठेंगे।

पहली बात, ध्यान और एकाग्रता एक ही बात नहीं है। दोनों बड़ी भिन्न बातें हैं। एकाग्रता, आत्म-सम्मोहन की विधि है, सेल्फ-हिप्नोसिस की, आटो-हिप्नोसिस की--खुद को मूर्च्छित कर लेने का उपाय है। एकाग्रता, कांसनट्रेशन, खुद को मूर्च्छित कर लेने की विधि है।

ध्यान आत्म-ज्ञान की विधि है।

ध्यान है आत्म-ज्ञान की विधि, और एकाग्रता है आत्म-मूर्च्छा की।

एकाग्रता है--स्वयं को भूल जाने की विधि, ध्यान है--स्वयं को जान लेने की।

एकाग्रता है--फारगेटफुलनेस, विस्मरण।

ध्यान है--रिमेंबरिंग, स्मृति।

इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है।

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