ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
लेकिन जिसके जीवन में प्रेम आया था, हो सकता है गीतों में प्रेम बहा हो। उसने अपनी तरफ से गीतों में प्रेम का दान किया हो। उसने जो जाना था, उसने जो जीया था, वह बहा हो उससे। उससे जरूर बहा था। लेकिन आप अगर उसको ही पकड़कर ठहर जाते हैं तो आपको वह नहीं मिलने को है।
ये जो दो भेद हैं, ये अगर हमारे खयाल में न रहें तो कठिनाई पैदा हो जाती है। आपको भी वह उपलब्ध हो सकता है, जो किन्हीं के शब्दों से प्रगट हुआ है। लेकिन वह उपलब्ध होगा निःशब्द में जाने से, शून्य में जाने से, निर्विचार में जाने से, ध्यान में जाने से। क्योंकि जिनको भी वह कभी उपलब्ध हुआ है ध्यान में, निर्विचार में, शून्य में ही उपलब्ध हुआ है।
किसी ने भी कहा है कभी आज तक कि मुझे शास्त्र से सत्य उपलब्ध हुआ है किसी ने कहा है यह आज तक कि मुझे शास्त्र से सत्य उपलब्ध हुआ है?
किसी ने भी नहीं। कहेगा भी कोई कैसे। शास्त्र से शब्द मिल सकते हैं, सत्य नहीं। सत्य पाने की तीव्र आकांक्षा हो तो इतनी तैयारी जरूरी है।
एक और मित्र ने पूछा है, उनके प्रश्न की चर्चा करके फिर हम ध्यान के लिए, रात्रि के ध्यान के लिए बैठेंगे।
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