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अपने अपने अजनबी

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9550
आईएसबीएन :9781613012154

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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।


अगले दिन उसी काँच की दीवार के पार से फोटोग्राफर का चेहरा देखकर सेल्मा को एकाएक लगा कि दुबारा देखना जरूरी है। दुबारा देखने पर उसने जाना कि वह चेहरा बिलकुल पीला पड़ गया है। फोटोग्राफर ने टीन का डिब्बा लटकाकर नदी का पानी पिया और अपनी दुकान के भीतर लौट गया। थोड़ी देर बाद वह फिर उसी तरह निकला और एक डिब्बा पानी भरकर लौट गया; और सेल्मा को लगा कि इस बीच वह थोड़ा और पीला हो गया है।

तीसरे पहर उसने देखा कि यान भी फोटोग्राफर की तरफ चला गया है और उसे रह-रहकर पानी पिला रहा है। फोटोग्राफर पानी पीकर दुकान के भीतर कहीं अदृश्य हो जाता है लेकिन थोड़ी देर बाद ही फिर घिसटता हुआ आ जाता है।

ये तो लक्षण अच्छे नहीं हैं। फोटोग्राफर शायद बीमार है। लेकिन बीमार है तो सेल्मा क्या कर सकती है? और जब वह देखती है कि यान ऐसी अनदेखती-अनपहचानती आँखों से उसके बरामदे की ओर देखता है और फिर मुँह फेर लेता है, तब उसे लगता कि न केवल वह कुछ कर नहीं सकती या करना चाहती भी नहीं, बल्कि अगर वह सकती या चाहती ही तो भी उस दूसरी दुनिया तक उसका पहुँचना न होता जिसमें वे दोनों हैं। वे दोनों हैं ही नहीं, एक भयानक दु:स्वप्न के अंग हैं; और दु:स्वप्न में देखे हुए लोगों तक जीते-जागते कोई कैसे पहुँच सकता है?

रात हो गयी। अँधेरे में नदी की ओर काल की घरघराहट कहीं बाहर हो गयी, और सेल्मा ने सब परदे खींचकर अपने को मानो अपनी ही ओट कर लिया। उसमें और इस बाहर में एक मौलिक विरोध है जिसे पकड़े रहना है; वही ध्रुव है और उसे पकड़े रहने का सामर्थ्य ही जीवन...

कभी न कभी यह बाढ़ उतरेगी ही, और तब वह टुटहा पुल शायद एक अतिरिक्त आकर्षण पा लेगा। सैलानी पुल पर हमेशा आते रहे, टूटे हुए पुल पर और भी अधिक आएँगे, क्योंकि अब तो वह एक कौतुक की चीज हो जाएगा। और उसका चायघर का कारोबार और भी चमक उठेगा। यों भी मुनाफा होता ही रहा है। कहावत है कि कोई भी दुर्भाग्य ऐसा नहीं होता जिसमें किसी-न-किसी का लाभ भी न हो...

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