ई-पुस्तकें >> अपने अपने अजनबी अपने अपने अजनबीसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।
क्या सेल्मा अकेले ही इस मापदंड से समय को नापती रही है? क्या यान और फोटोग्राफर भी उसी नदी-प्रवाह से घिरे हुए उन्हीं भँवरों की ओर नहीं देख रहे हैं? क्या उसके पास कोई दूसरा माप है? नदी का प्रवाह और काल का प्रवाह पर्याय है; क्योंकि दोनों की पहचान डर की पहचान है। प्राणों के डर की...
यान, फोटोग्राफर और सेल्मा के बीच एक दीवार-सी खिंच गयी। कम से कम उन दोनों और सेल्मा के बीच तो खिंच ही गयी; क्योंकि सेल्मा कभी-कभी खिड़की के काँच में से झाँककर देखती कि वे दोनों कुछ बातें कर रहे हैं, या कभी-कभी इशारों से एक-दूसरे को कुछ कह रहे हैं। दोनों ने इस बीच शायद दो-चार बार एक साथ चाय बनाकर भी पी, ऐसा उनकी हरकतों से सेल्मा ने अनुमान लगा लिया।
चौथे दिन यान फिर उसके पास कुछ खरीदने आया। यान को सामने पाकर उसे एकाएक लगा कि वह दीवार और भी ठोस हो गयी है, और उसका मन यान के प्रति एकाएक कठोर हो आया। सहानुभूति उन सबकी परिस्थिति में अकल्पनीय हो, ऐसा उसे अब तक नहीं लगा था - इस बारे में कुछ सोचने की आवश्यकता ही उसे नहीं हुई थी। लेकिन जिस ढंग से यान से बात हुई - यानी यान ने जैसे बात शुरू की - उससे सेल्मा को एकाएक ऐसा लगा कि दुनिया का मतलब और कुछ नहीं है सिवा इसके कि एक वह है, और बाकी ऐसा सब है जो कि वह नहीं है, और जिसके साथ उसका केवल विरोध का सम्बन्ध है। यह विरोध ही एकमात्र ध्रुवता है जिसे उसे कसकर पकडेक रहना है, जिसे पकड़े रहने के अपने सामर्थ्य को उसे हर साधन से बढ़ाना है।
यान ने जेब में से पैसे निकाले और फिर कहा, 'यह तो काफी नहीं है, मैं उधर से और ले आता हूँ - तब तक तुम सामान निकालकर रखो।'
सामान यानी थोड़ा-सा सूखा गोश्त, और डिब्बे का दूध। जब तक सेल्मा भीतर से यह निकालकर लायी तब तक यान दुबारा लौट आया था। उसने पैसे चुकाये और सामान लेकर चला आया।
दीवार फिर पहले-सी खड़ी हो गयी। ठोस पर पारदर्शी दीवार, जिसमें से सेल्मा टूटे पुल की बाकी दुनिया की हरकतें देखती रही।
तीसरे पहर उधर वे दोनों फिर मिले। शायद उन्होंने चाय बनायी। और शायद चाय स्टोव पर नहीं बनायी गयी, लेकिन यान ने अपने कुछ खिलौने जलाकर आग तैयार की। और शायद अच्छी नहीं बनी, क्योंकि उसको पीनेवाले दोनों के चेहरे विकृत दीखे।
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