ई-पुस्तकें >> अपने अपने अजनबी अपने अपने अजनबीसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।
कोई आध घंटे बाद सेल्मा ने पुकारा।
मेरे पास जाने पर बोली, 'मेरी एक विनती है।'
मैंने कहा, 'कहो।'
उसने फिर कहा, 'इसके लिए मैं माफी चाहती हूँ। लेकिन तुम मुझे उठाकर धूप तक ले जा सकती हो। मैं चीखूँ भी तो न सुनना - एक बार -'
मैंने कहा, 'लेकिन सेल्मा, धूप तो चली गयी।'
वह थोड़ी देर चुप रही। फिर बोली, 'यही ठीक है। या कि दूसरा कुछ भी बेठीक होता! जाने दो।'
मुझ पर एकाएक उदासी छा गयी। पहली बार - एक मात्र बार - मुझे लगा कि मेरे मन में बुढ़िया के प्रति करुणा उपजी है। लेकिन फिर एकाएक ही मन कड़ा हो आया। बुढ़िया कैसे कह सकती है यह ठीक ही है, या कि दूसरा कुछ बेठीक होता? यही बात तो बेठीक है - बुढ़िया ही बेठीक है!
एकाएक बुढ़िया ने कहा, 'योके, मैं यह सब एक बार पहले देख चुकी हूँ। इसमें से गुजर चुकी हूँ।'
बुढ़िया की बात मैं नहीं समझ सकी। लेकिन मैंने कुछ कहा नहीं। चुपचाप खड़ी रही। उसी ने फिर कहा, 'वर्षों पहले, यहाँ आने से पहले, जब मैं शहर में थी - यहाँ आये मुझे कोई अट्ठाईस वर्ष हो गये हैं - यह तो तुम्हारे जन्म से पहले की बात होगी -'
मेरे मुँह से निकल गया, 'मेरे लिए तो यह दूसरी ही दुनिया की बात है।'
वह बोली, 'मेरे लिये भी - दूसरी ही दुनिया की बात है - सुनोगी - तुम्हें समय है?'
मैंने कहा, 'जरूर, मैं अभी आयी - कुछ काम ठीक-ठाक कर आऊँ।'
लेकिन थोड़ी देर बाद दुबारा जब वहाँ गयी तो मानो उसे मेरे आने का पता ही नहीं लगा। मैं काफी देर तक उसके पास खड़ी रही, फिर एक चौकी खींचकर बैठ गयी और फिर थोड़ी देर बाद चली आयी।
दूसरी दुनिया की बात। दूसरी दुनिया भी कोई दुनिया है? या कि दूसरी ही दुनिया है, और यह जो है वह नहीं है?
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