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अपने अपने अजनबी

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9550
आईएसबीएन :9781613012154

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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।


थोड़ी देर बाद उसने फिर कहा, 'एपिफानिया ईश्वर की पहचान का दिन है। मैं सोचती हूँ कि कल मुझे भी वह दीख जाता, मैं भी उसे पहचान लेती। योके, अगर मैं कल मर जाऊँ तो तुम्हें कैसा लगेगा? कभी एकाएक लगता है कि समय आ गया है। लेकिन मैं नहीं चाहती हूँ कि बर्फ के पिघलने से पहले मैं मर जाऊँ। और खास कुछ नहीं - तुम्हें अपना बन्दी बनाकर रखना नहीं चाहती। अपनी तरफ से मैं तैयार हूँ। जिस दिन तुम्हें स्वतन्त्रता मिलेगी उसी दिन मैं जा सकूँगी, मुझे भी सूरज दीख जाएगा!'

पहले मैं मृत्यु की बात पर उसे टोक देती थी। अब उसे व्यर्थ मानकर छोड़ दिया है। उसे मृत्यु की बात करनी होगी तो करेगी ही, मेरे रोकने से रुकेगी नहीं! और फिर शायद ठीक ही कहती है; और मुझे इस विचार का आदी हो जाना चाहिए।

मैंने कहा, 'शुक्रिया सेल्मा! मैं तो चाहती हूँ कि तुम अभी और कई वर्ष की बर्फ देखो - कई बर्फों के बाद की धूप!'

उसने मुस्कुराकर फिर हाथ से वही अनिर्दिष्ट इशारा किया जिसका कुछ भी अर्थ हो सकता है।...

14


6 जनवरी :

रात में मैं हड़बड़ाकर उठ बैठी। लगा कि भूकम्प हो रहा है, सारा मकान थरथरा रहा है। फिर एकाएक कहीं धमाका हुआ और फिर ऐसा लगा कि एक तीखा ठंडा झोंका कमरे में घुस आया है। थोड़ी देर मैं सुन्न-सी बैठी रही, फिर मुझे ध्यान आया कि अगर धमाका मैं सुन चुकी हूँ तो ऊपर से बर्फ का बोझ हट गया होगा, और तभी यह समझ में आया कि धमाका उसी का था। मैं उछलकर खड़ी हो गयी। मेरा मन हुआ कि उसी समय जाकर दरवाजा खोलकर देखूँ, खुलता है कि नहीं। कि किसी तरह अपने को सँभालकर कम्बल ओढ़कर लेट गयी। इतने में ही बदन ठिठुर गया था।

किसी तरह कुछ घंटे बिस्तर में बिताकर उठी तो सोचा कि पहले नाश्ता कर लेना चाहिए। बैठने का कमरा पहले की अपेक्षा कहीं अधिक ठंडा हो गया था, और ऐसे में दरवाजा खोलने की कोशिश मूर्खता ही होगी।

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