ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
तो विद्या के नाम पर पौरोहित्य सिखाया जा रहा था। पौरोहित्य से विज्ञान नहीं निकलता। विद्या के नाम पर रिचुअल सिखाया जाता था, रिचुअल से कोई धर्म नहीं निकलता है। विद्या के नाम पर समाज का एक ढांचा था, उस ढांचे को कैसे कायम रखा जाए, इसका आयोजन किया जा रहा था, उस ढांचे को कैसे कायम रखा जाए, इसका आयोजन किया जा रहा था। वह जो स्ट्रक्चर था वह टूट न जाए, उसकी पूरी आयोजना की जाती थी। क्षत्रिय का काम यह था कि ब्राह्मण की रक्षा करे और ब्राह्मण का काम यह था कि वह क्षत्रिय को प्रोत्साहन दे और वह कहे कि यह भगवान है। जिसको आप कहते हैं कि हमने बड़ी ऊंची समाज व्यवस्था बना रखी थी, नाम बडे़ प्यारे हैं लेकिन उस समाज व्यवस्था के भीतर असलियत क्या थी, नाम बडे़ प्यारे हैं लेकिन उस समाज व्यवस्था के भीतर असलियत क्या थी और सत्य क्या था? सत्य यह था कि राम जैसे अच्छे आदमी को भी शूद्र के कानों में शीशा पिघलवाकर डलवाने की हमने व्यवस्था की है, क्योंकि वह वेद सुन रहा था कान से। वेद नहीं सुन सकता है शूद्र। ऐसे हम विद्या गुणी थे कि शूद्र के कान में हमने शीशा पिघलवाकर डलवा दिया। और मजा यह है कि आज इस पूरे वेद को तुम पढ़ने को किसको कहो, तो पढ़ कर वह पाता है कि कुछ भी नहीं है। दस पक्तियों को छोड़ कर सारा वेद व्यर्थ है। यानी कई दफे इतनी हैरानी होती है कि जिस वेद को तुम इतना सुरक्षित करते रहे थे, उसमें दस पच्चीस इम्पार्टेन्ट पक्तियां हैं, बाकी सब कबाड़ और कचरा है जिसमें कि कल्पना भी नहीं हो सकती कि इसमें धर्म का भी कोई संबंध है। एक दूध को दोहने वाला भगवान से प्रार्थना कर रहा है कि गाय के थन में ज्यादा दूध आ जाए--यह भी वेद में है। एक किसान कह रहा है कि हे भगवान वर्षा हो जाए, इंद्र भगवान वर्षा हो जाए मेरे खेत में--यह भी वेद है। एक आदमी कह रहा है, मेरे शत्रु सब मर जाएं--यह भी वेद में है। यह सब धर्म शास्त्र है। इसका अध्ययन कर रहे थे ब्रह्मचारी गण बैठकर वर्षों तक।
विद्या के नाम पर क्या था? और गृहस्थ आश्रम के नाम पर आपने कौन सी साइंस विकसित की थी? यह विकसित किया आपने कि स्त्रियों को सती करवाया। यह विकसित किया कि पुरुषों को परमात्मा बनवा दिया और औरत को दासी बनवा रखा है इतने दिन तक। यह विकसित किया कि स्त्री की सारी शिक्षा छीन ली, सारी स्वतंत्रता छीन ली, सारा सामर्थ्य छीन लिया।
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