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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- मनु जी ने?

उत्तर-- हां, वही तो गुरु, हमारे व्यवस्थापक थे। मनु हमारा एजुकेट है। हमारे एजुकेट दोनों थे, एक मनु और एक मैकाले। दो के अलावा इस मुल्क में कोई एजुकेट हुआ नहीं। एक मनु था, वह हमें बेवकूफ बना गया, दूसरा मैकाले हमें बना गया। और दो हमारे एजूकेट हैं और दोनों ने मिल कर सारे मुल्क के दिमाग को खराब कर रखा है।

प्रश्न-- लेकिन बुद्ध ने भी तो पैंतालीस साल तक दिया?

उत्तर-- जरूर, बुद्ध ने हिम्मत की तो बुद्ध टिक नहीं सके? आप समझिये न। बुद्ध ने हिम्मत की, सो बुद्ध कहाँ हैं। बुद्ध हिंदुस्तान में टिक न सके, पैर उखड़ गए यहाँ से।

प्रश्न-- बुद्ध ने क्या किया?

उत्तर-- बड़ी हिम्मत की। हिंदुस्तान में कोई क्रांतिकारी नहीं हुआ, ऐसा नई लेकिन हिंदुस्तान की धारा ऐसी रही कि क्रांतिकारी के पैर यहाँ टिक नहीं सके। आज भी नहीं टिकते। आज भी पूरी धार उखाड़ने की कोशिश करती है कि पैर टिक जाए कहीं। आज भी हम कोई क्रांति उन्मुख समाज नहीं हैं, रिवोल्यूशनरी समाज नहीं है हमारा और मेरा कहना है, जो समाज क्रांति उन्मुख नहीं है वह समाज मुर्दा है और मर चुका है क्योंकि क्रांति तो चाहिए रोज, हर पहलू पर।

प्रश्न-- अस्पष्ट

उत्तर-- एक तो इस देश में कभी भी शरीर की बहुत चिंता नहीं की गयी है और इसीलिए शरीर की दृष्टि से हम बहुत हीन और दीन हो गए हैं। तो बचपन में सबसे ज्यादा जोर तो शरीर स्वास्थ्य पर दिया गया है, सबसे ज्यादा जोर। कुछ भी मूल्यवान नहीं है उससे ज्यादा। यानी सब कुछ छोड़ा जा सकता है, लेकिन उसको नहीं छोड़ा जा सकता है। चाहे सारी शिक्षा छूट जाए तो कोई हर्जा नहीं। बहुत कीमती है, तो उसके शरीर को इतना मजबूत और बलवान बना दें। तो आने वाले पूरे जीवन में उसके शरीर के बाबत उसको विचार भी न करना पड़े कि वह है भी। स्वस्थ आदमी का एक ही लक्षण है कि उसको शरीर का पता भी न रहे। और बीमार आदमी का लक्षण है कि उसको पता चलता रहे कि यह शरीर है, यह पैर है, यह सिर है। तो कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए। इतनी एक तो शारीरिक व्यवस्था देनी चाहिए, लेकिन हिंदुस्तान का सारा चित्त शरीर विरोधी रहा है आज तक। सच तो यह है कि शरीर को जितना हम नुकसान पहुँचाएंगे उतना ही हम आध्यात्मिक समझे जाते रहे हैं।

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