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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

फिर क्या रास्ता हो सकता है? शब्दों से कोई ऊपर उठे तो स्वयं को जान सकता है? सत्य के पार उठे, शब्द को छोड़े, शब्द के पीछे जाए, फूल को छोड़ दे, शब्द को और जो फूल है उस तक पहुँचे। गुलाब को छोड़ दे शब्द को, और जो गुलाब का फूल है वस्तुतः उस तक जाए, तो शायद जान भी सकता है।

चीन में एक सम्राट था। उसने सारे राज्य में खबर की कि मैं एक राज महल बनाना चाहता हूं। एक मुर्गे का चित्र बनाना चाहता हूं। सारे राज्य के बड़े-बड़े कुशल कलाकार, चित्रकार, पेंटर मुर्गे का चित्र बनाकर राजदरबार में उपस्थित हुए। बड़ा पुरस्कार के मिलने की संभावना थी। फिर जो आदमी जीत जाएगा उस प्रतियोगिता में वह राज्य का कला गुरु भी नियुक्त हो जाएगा। वह शाही चित्रकार हो जाएगा। हजारों चित्र आए, एक से एक सुंदर चित्र था। राजा दंग रह गया। चित्र ऐसे मालूम पड़ते थे जैसे जिंदा मुर्गे हों, इतने जीवंत थे। बड़ी मुश्किल हो गई। कैसे तय करें कि कौन चित्र सुंदर है? भिन्न भिन्न चित्र थे, सुंदर सुंदर चित्र थे। एक बूढ़ा चित्रकार था राजधानी में। राजा ने उसे स्मरण किया और उसे बुलाया और कहा कि कोई चित्र चुनो। कौन सा चित्र सत्य है? कौन सा चित्र सर्वांग सुंदर है, उसी को हम राज्य की मुहर बना देंगे।

उस बूढे चित्रकार ने द्वार बंद कर लिया। सुबह से सांझ तक वह कमरे के भीतर था। शाम को बाहर आया, उदास। राजा को उसने कहा, कोई भी चित्र ठीक नहीं, कोई भी चित्र मुर्गे का नहीं है। राजा तो दंग रह गया सब चित्र मुर्गों के थे। उसकी तो कठिनाई यह हो रही थी कि कौन चित्र सबसे सुंदर है? और उस चित्रकार ने आकर कहा कि चित्र मुर्गे के नहीं हैं। राजा ने कहा, क्या कहते हैं आप? क्या कसौटी है आपके जांचने की? क्या क्राइटेरियन है, कैसे आपने पहचाना? उसने कहा, मेरा एक ही क्राइटेरियन हो सकता था, एक ही मापदंड हो सकता था। मैं एक जानदार, जवान मुर्गे को लेकर कमरे के भीतर गया और मैंने देखा मुर्गा पहचानता है किसी मुर्गे को कि नहीं। लेकिन मुर्गे ने ध्यान ही नहीं दिया इन चित्रों पर। हजार चित्र रखे थे वहां, वहां हजार मुर्गे थे। अगर मुर्गा एक भी मुर्गे को पहचानता तो बांग देता, चिल्लाकर खड़ा हो जाता, लड़ने की स्थिति में आ जाता या पास चला जाता, दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाता, कुछ करता। लेकिन मुर्गा दिन भर रहा। सोया रहा, बैठा रहा, लेकिन एक चित्र को उसने नहीं देखा। राजा ने कहा, यह तो बड़ी मुश्किल हो गयी। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि मुर्गों से पहचान करवायी जाएगी। अब क्या होगा?

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