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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

उस बूढे ने कहा, मेरी उम्र ज्यादा हुई अन्यथा मैं कोशिश करता। लेकिन कौन जाने, बच जाऊं। कम से कम तीन साल लग जाएंगे। तो मैं कोशिश करूं, राजा ने कहा, तीन साल। सत्तर साल का बूढा था, सारे देश में प्रसिद्ध चित्रकार था। राजा ने कहा एक साधारण से मुर्गे का चित्र बनाने में तीन साल। उस बूढ़े ने कहा चित्र बनाना तो बहुत आसान है, मुर्गे को जानना बहुत कठिन है। मुर्गे की आत्मा को इबाइब करना बहुत कठिन है। मुर्गे के साथ एक हो जाना बहुत कठिन है। और जब तक मैं मुर्गे के साथ एक न हो जाऊं, आत्मैक्य न हो जाए, जब तक मेरा उससे मिलन न हो जाए, तब तक मैं कैसे जानूं कि मुर्गा भीतर से क्या है? बाहर से जो दिखाई देता है, रंग रेखा उनसे कोई मुर्गे को नहीं पहचान सकता। मुर्गा भीतर क्या है?

तब है बात। अगर गांधी को आप ऊपर से देखें तो पहचान सकते हैं कि भीतर क्या है? ऊपर से तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। आपको बंबई के रास्तों पर मिल जाए तो क्या पहचान लेंगे कि भीतर क्या है? जीसस क्राइस्ट आपको मिल जाएं, पहचान लेंगे भीतर क्या है? आदमी ऊपर से दिखायी पड़ेगा, रूप दिखायी पड़ेगा, रंग दिखायी पड़ेगा, शक्ल दिखायी पड़ेगी? और क्या दिखाई पड़ेगा? ये तो प्रतीक हुए, लेकिन भीतर यह आदमी क्या है? कैसे दिखाई पड़ेगा?

उस बूढ़े ने कहा, बहुत मुश्किल है, आदमी का चित्र भी बनाना होता तो भी आसान था क्योंकि मैं भी एक आदमी हूं, भीतर से जान सकता हूं कि आदमी क्या होता है? लेकिन मुर्गा? मैं मुर्गा नहीं हूं। मुर्गा भीतर से कैसा अनुभव करता है, उसकी आत्मा क्या है, यह मैं कैसे जानूं? राजा ने कहा, कोशिश करें, चित्र तो जल्दी चाहिए। वह बूढ़ा जंगल में चला गया। छह महीने बीत गए तो राजा ने आदमी भेजे कि पता लगाओ, वह बूढा जिंदा है या मर गया। छह महीने हो गए, कोई खबर नहीं आयी। आदमी गए तो देखा, जंगली मुर्गों के बीच में वह बूढ़ा बैठा हुआ था चुपचाप छह महीने बीत गए। वह जंगली मुर्गों की भीड़ में बैठा था चुपचाप। निरीक्षण करता था, आब्जर्व करता था, शायद आत्मैक्य के लिए कोई उपाय करता था। उसने लोगों को हटा दिया और कहा, जाओ, बीच में बार-बार बत आना। तुम्हारे आने से बाधा पड़ती है। मुझे याद आ जाता है कि मैं आदमी हूं। और जैसे मुझे याद आता है, मुर्गा मेरे हाथ से छूट जाता है। तुम यहां बार बार मत आना। तीन साल बाद मैं आ जाऊंगा। तुम्हें बीच बीच में देखता हूं तो मुझे फिर याद आ जाता है कि मैं आदमी हूं। छह महीने में मैंने कोशिश की थी कि मैं मुर्गा हूं। वह भूल जाता है, वह हाथ से छूट जाता है।

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