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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- ज्ञान क्या है?

उत्तर-- उसकी ही बात करता हूं। मैं जो पूरी बात करता हूं। मेरे लिए तो दो स्थितियां हैं हमारी। ज्ञान की एक स्थिति वह है जो हम कुछ जानते हैं। जैसे मैं ज्ञान, इस वस्तु को देख रहा हूं, ज्ञान से आपको देख रहा हूं। ज्ञान से जब किसी को जानता हूं। ज्ञान पूरे वक्त किसी न किसी को जान रहा है। यह ज्ञान की मिश्रित स्थिति है। इसमें ज्ञान भी है। ज्ञाता पीछे छिपा है और ज्ञेय सामने खड़ा हुआ है। मैं हूं जानने वाला, वह पीछे छिपा हुआ है। आप, जिसको मैं जान रहा हूं, मेरे सामने खडे़ हैं और दोनों के बीच का जो संबंध है वह ज्ञान है।

तो मुझे दो बातों का पता चल रहा है -- एक तो जेय का और ज्ञान का। ज्ञाता का पता नहीं चल रहा है। एक ज्ञान की स्थिति यह है। और एक ज्ञान की स्थिति वह है कि ज्ञेय तो कोई भी नहीं है। ज्ञान है और ज्ञाता का पता चल रहा है। ये तीन बिंदु हैं न। ज्ञेय है, ज्ञान है और ज्ञाता है। हमें तो ज्ञेय का पता चलता है और ज्ञान का पता चलता है, ज्ञाता का पता नहीं चलता है। यह मिथ्या ज्ञान है। जो जान रहा है उसका तो पता नहीं चल रहा है, जो जाना जा रहा है उसका पता चल रहा है ज्ञेय न हो, ज्ञाता रह जाए और ज्ञान रह जाए तो यह सम्यक ज्ञान है। ज्ञाता का पता चल रहा है। और ज्ञान की क्षमता का पता चल रहा है, वह सम्यक ज्ञान है। मिथ्या ज्ञान से सम्यक ज्ञान पर परिवर्तन होगा। अगर ठीक से इस बात को समझें तो जब ज्ञेय पता नहीं चलेगा तो ज्ञाता भी पता नहीं चलेगा क्योंकि वह अंतर्सबंधित था। ज्ञेय था इसलिए हम उसे ज्ञाता कहते थे। जब ज्ञेय कोई भी नहीं रहा तो उसे ज्ञाता भी नहीं कहेंगे। तब मात्र ज्ञान का अनुभव होगा। केवल मात्र ज्ञान है, इसका अनुभव होगा। उस केवल मात्र ज्ञान के अनुभव को केवल ज्ञान कहा है। केवल ज्ञान की शक्ति भर का बोध होगा। न कोई जान रहा है, न कोई जाना जा रहा है। केवल जानने की क्षमता का स्पंदन हो रहा है। केवल कांसेसनेस भर रह गयी। किसी चीज के प्रति कांसेस नहीं है, कोई कांसेस नहीं है, केवल प्योर कांसेसनेस रह गयी है।

यह प्योर कासेसनेस समाधि में भी अनुभव होगी। लेकिन समाधि में यह थोड़ी देर टिकेगी और विलीन हो जाएगी। अगर यह सतत चौबीस घंटे अनुभव होने लगे तो केवल ज्ञान की जो प्राथमिक अनुभूतियां हैं वह समाधि मिलनी शुरू होगी। और जब समाधि पूरे चौबीस घंटे पर फैल जाएगी तो वह केवल ज्ञान हो जाएगा। ज्ञान मात्र का शेष रह जाना, ज्ञाता और ज्ञेय दोनों का मिट जाना है।

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